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परिभाषा-पाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता ३३१ इस व्याख्या में परिभाषेन्दुशेखर के विरोधों का बहुधा परिहार उपलब्ध होता है।
२२-२३ परिभाषावृत्तिकार अडियार के हस्तलेख-संग्रह के सूचीपत्र 'व्याकरण विभाग' में संख्या ४६५,४६६ पर पाणिनीय परिभाषा की दो वृत्तियों का उल्लेख ५ मिलता है । दोनों के ही लेखकों का नाम अज्ञात है।
इनमें संख्या ४९५ की श्लोक-बद्ध वृत्ति है, और संख्या ४६६ की गद्यरूप ।
इस प्रकार पाणिनीय सम्प्रदाय से सम्बद्ध ज्ञात परिभाषाव्याख्याताओं का वर्णन करके अब अर्वाचीन व्याकरण से सम्बद्ध परिभाषा- १० प्रवक्ता और व्याख्याताओं का वर्णन करते हैं
४-कातन्त्रीय परिभाषा-प्रवक्ता - कातन्त्र व्याकरण से सम्बद्ध जो परिभाषापाठ सम्प्रति उपलब्ध होता है, वह अनेक प्रकार का है। परिभाषासंग्रह में पं० काशीनाथ अभ्यङ्कर ने चार प्रकार का पाठ प्रकाशित किया है। दो पाठ वृत्ति सहित हैं, और दो मूलमात्र । इनमें अन्तिम पाठ कालाप परिभाषासूत्र के नाम से छपा है। कलाप कातन्त्र का ही नामान्तर है, यह हम प्रथमभाग में कातन्त्र प्रकरण में लिख चुके हैं। ___ इन पाठों में प्रथम दुर्गसिंह के वृत्तियुक्त पाठ में ६५ परिभाषाएं हैं, द्वितीय भावमिश्रकृत वृत्ति में ६२, तृतीय कातन्त्र परिभाषासूत्र में ६७ परिभाषासूत्र और २६ बलाबल सूत्र-९६ सूत्र, और चतुर्थ कालाप परिभाषा सूत्र ११८ परिभाषाए हैं।
प्रवक्ता-कातन्त्र परिभाषापाठ का आदि प्रवक्ता अथवा संग्रहीता कौन व्यक्ति है, यह कहना अत्यन्त कठिन है। दुर्गसिंहकृत वृत्ति के प्रारम्भ में लिखा है
'तत्र सूत्रकारयोः शर्ववर्मकात्यायनयोः सूत्राणां चतुःशत्यां पञ्चा
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