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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
स्वकृत परिभाषा की लघुवृत्ति प्रकाशित की है। यह काशी से सं० १९७३ में छपी है । इसमें पहिली १२७ परिभाषाएं परिभाषेन्दुशेखर के अनुसार हैं।' अन्त में २५ परिभाषाएं ऐसी व्याख्यात हैं, जो परिभाषेन्दुशेखर में नहीं हैं।
१९. गोविन्दाचार्य गोविन्दाचार्य नामक किसी वैयाकरण द्वारा विरचित परिभाषार्थप्रदीप संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के सरस्वती भवन के संग्रह में विद्यमान है । हमने इसे सन् १९३४ में देखा था। उस समय यह संग्रह संख्या १३ वेष्टन संख्या ६ में रखा हुआ था। __अब हम अज्ञातनामा लेखकों द्वारा विरचित परिभाषावृत्तियों का उल्लेख करेंगे।
२०. परिभाषावितिकार २१. परिभाषाविवृत्ति-व्याख्याकार (सं०१८६६ वि०)
परिभाषाविवृत्ति ग्रन्थ के लेखक का नाम अज्ञात है, और यह १५ ग्रन्थ भी हमारे देखने में नहीं आया। परन्तु गोण्डल के रसशाला
औषधाश्रम. के हस्तलेख संग्रह में इसकी व्याख्या का एक हस्तलेख विद्यमान है। द्र०-व्याकरणविभाग संख्या ३४। इस परिभाषाविवतिव्याख्या के लेखक का नाम भी अज्ञात है।
ग्रन्थकार ने प्रारम्भ में जो परिचय दिया है, तदनुसार उसके २० पिता का नाम भवदेव, और माता का नाम सीता था।'
इस हस्तलेख के अन्त में सं० १८६६ निर्दिष्ट है। इससे इतना व्यक्त है कि इसका काल सं० १८६६ वि० अथवा उससे पूर्ववर्ती है।
१. इति परिभाषाषेन्दुशेखरपाठः। २. नत्वा तातं गुरु देवं भवदेवाभिघं विभुम् । यद्यशोभिर्वलिताः ककुभो जननी पराम् ॥
सीतां पतिव्रतां देवीं भरद्वाजकुलोद्वहाम् । • विवृतेः परिभाषाणां व्याख्यां कुर्वे यथामति ।