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३२८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास सम्प्रति परिभाषा के ज्ञान के लिए यही ग्रन्थ पठन-पाठन में व्यवहृत होता है।
परिचय-नागेश भट्ट का विस्तृत परिचय हम इस ग्रन्य के प्रथम भाग, पृष्ठ ४६७-४६९ (च०सं०) पर लिख चुके हैं । पाठक वहीं देखें।
नागेश ने परिभाषेन्दुशेखर की रचना मञ्जूषा और शब्देन्दुशेखर के अनन्तर की है। शब्देन्दुशेखर का निर्देश परिभाषा १६,३३,११४ तथा मञ्जूषा का निर्देश परिभाषा ४३,८४ की व्याख्या में मिलता है। __ परिभाषेन्दुशेखर में व्याख्यात परिभाषाओं का क्रम लक्ष्यसिद्धि
के अनुसार है, यह हम पूर्व कह चुके हैं । यह क्रम नागेश भट्ट के द्वारा १० सम्पन्न किया गया, अथवा उससे पूर्ववर्ती किसी वैयाकरण ने तैयार किया, यह अज्ञात है।
टीकाकार परिभाषेन्दुशेखर पर कई लेखकों ने टोकाए लिखी हैं। उनमें से कतिपय प्राचीन टीकाएं इस प्रकार हैं
वैद्यनाथ पायगुण्ड-गदा शिवराम (१८५०)-लक्ष्मीविलास विश्वनाथभट्ट-चन्द्रिका ब्रह्मानन्द सरस्वती-चित्प्रभा राघवेन्द्राचार्य-त्रिपथगा वेङ्कटेशपुत्र-त्रिपथगा भैरवमिश्र-भैरवी शेषशर्मा-सर्वमंगला शंकरभट्ट-शंकरी
इनमें से वैद्यनाथ पायगुण्ड कृत छाया नाम्नी प्रदीपोद्योत व्याख्या २५ तथा प्रभा नाम्नी शब्दकौस्तुभ टीका, और राघवेन्द्राचार्यकृत प्रभा
नाम्नी शब्दकौस्तुभ टोका का वर्णन हम प्रथम भाग में यथास्थान पर चुके हैं।
इनके अतिरिक्त अन्य भी कुछ टीकाएं प्राचीन तथा नवीन लेखकों की उपलब्ध होती हैं।