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________________ ३२६ संस्कृत-व्याकरण-शास्त्र का इतिहास गुरु-इसके प्रथम श्लोक के अनुसार धर्मसूरि के गुरु का नाम उपेन्द्रपाद यति है। काल-इसका काल अज्ञात है, परन्तु सूचीपत्र के अनुसार जिन ग्रन्थकारों के नाम उद्धृत हैं उनमें प्रौढ़-मनोरमा की शब्दरत्न व्याख्या के रचयिता हरिदीक्षित का नाम भी है। अतः इसकी रचना दिक्रम की १८ वीं शती में हुई होगी। - - १४. अप्पा सुधी परिभाषापाठ पर अप्पा सुधी विरचित परिभाषारत्न नामक ग्रन्थ अडियार के पुस्तक-संग्रह में विद्यमान है । इसकी संख्या ४८० १० है (व्याकरणविभाग)। यह परिभषारत्न श्लोकबद्ध है। इसके अन्त में निम्न लेख है 'इति परिभाषारत्ने श्लोकाः (१९३), पञ्चाधिकविंशतिप्रयुक्तशतं १२५ परिभाषा गृहीता। ___ इस अप्पा सुधी के देश काल आदि के विषय में हमें कुछ भी ज्ञाल १५ नहीं है। १५. उदयंकर भट्ट उदयङ्कर भट्ट विरचित परिभाषाप्रदीपाचि का एक हस्तलेख काशी के सरस्वती भवन के संग्रह में, और दूसरा अडियार के हस्त लेख संग्रह में विद्यमान है । द्रष्टव्य-काशी का पुराना सूचीपत्र,संग्रह २० सं० १३, वेष्टन संख्या १३, तथा अडियार संग्रह का व्याकरणविभाग का सूचीपत्र संख्या ४७६ । अडियार के हस्तलेख केआदि में--कृत्वा पाणिनिसूत्राणां मितवृत्त्यर्थसंग्रहम् । परिभाषाप्रदीपाचिस्तत्रोपायो निरूप्यते ।। अन्त में परिभाषाप्रदीपाचिष्युदयंकरदशिते । प्रथमो व्याकृतोऽध्यायः संगतः संयतः सताम् ॥ ये श्लोक उपलब्ध होते हैं । इन से इतना ही विदित होता है कि
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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