________________
५
श्रादि में - श्रीगुरून् पितरौ नत्वाऽग्निहोत्री भास्कराभिधः । भास्करं परिभाषाणां तनुते बालबुद्धये ||२|| अन्त में - काशीक्षेत्रवासी हुतकठिनतरारातिषड्वर्गदम्भः । श्रीमानापाजिभट्टः सुरयजनतत्परः शुद्धधीराविरासीत् ॥ इति काश्यपान्वयसंभवाग्निहोत्रिकुलतिलकायमानहरिभट्टसूनुश्रीमद्भापाजिभट्टसूनुना' भास्करविरचितः परिभाषा - भास्करः समा१० प्तिमगात् ।
१५
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
३२४
में ग्रन्थकर्ता का नाम हरिभास्कर लिखा है ।"
परिचय - भास्कर ने परिभाषाभास्कर में अपना परिचय इस प्रकार दिया है
२०
भण्डारकर प्राच्यविद्या शोध प्रतिष्ठान में भी इस व्याख्या के तीन हस्तलेख हैं । द्र० व्याकरण विभागीय सूचीपत्र ( सन् १९३८ ) संख्या ३०१, ३०२, ३०३ ( पृष्ठ २३४ - २३६) । इनके अन्त में निम्न पाठ है
इति श्रीमदग्निहोत वंशावतंसहरि भट्टात्मजापाजिभट्टसुतापरामिधान हरिभास्कर कृतः परिभाषा भास्करः समाप्तिमगात् ।
इन निर्देशों के अनुसार भास्कर के पिता का नाम प्रापाजि, पितामह का नाम हरिभट्ट और हरिभट्ट के पिता का नाम उत्तमभट्ट था । इसका गोत्र कश्यप था, और यह अग्निहोत्री कुल का था ।
१. जम्मू के सूचीपत्र पृष्ठ ४२ पर हरिभास्कर के पिता का नाम 'आयाजि' छपा है । सम्भवतः यह 'श्रापाजि' का भ्रष्ट पाठ हो ।
२. हरिभास्करकृत: परिभाषाभास्कर --~ ..........। पाठान्तर पूना सं० पृष्ठ ३७४ ।
२५
३. मद्रास राजकीय पुस्तकालय सूचीपत्र. भाग २, खण्ड १ C, पृष्ठ २४२५, संख्या १७१३ । तथा भण्डारकर प्राच्यविद्या शोध प्रतिष्ठान पूना, व्याकरण विभागीय सूचीपत्र (१९३८), संख्या ३०३ ६५३ / १८८३-८४ ।
४. द्र० - तञ्जीर पुस्तकालय के सूचीपत्र, भाग १०, ग्रन्थ संख्या ५७१७ का विवरण ।