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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
होता है कि यह परिभाषावृत्ति सीरदेव की परिभाषावृत्ति के अनुकूल है। क्योंकि दोनों वत्तियों में अष्टाध्यायी के अध्याय' क्रम से परिभाषाओं का संग्रह है, और दोनों में न्यायमूला परिभाषाएं अन्त में
व्याख्यात हैं । इस परिभाषावृत्ति के परिभाषार्थसंग्रह नाम से ध्वनित ५ होता है कि यह सीरदेवीय बृहत्परिभाषावृत्ति का संग्रहरूप ग्रन्थ है।
सीरदेवीय परिभाषावृत्ति के अज्ञात्तकर्तृक परिभाषावृत्ति-संग्रह का उल्लेख हम पूर्व पृष्ठ ३१८ पर कर चुके हैं।
व्याख्याकार १-स्वयंप्रकाशानन्द सरस्वती-वैद्यनाथ शास्त्री के गुरु स्वयं १० प्रकाशानन्द सरस्वती ने इस परिभाषार्थसंग्रह पर चन्द्रिका नाम्नी एक
व्याख्या लिखी है । इसके हस्तलेख मद्रास तथा तजौर के पुस्तकालयों में विद्यमान हैं।
परिचय–स्वयंप्रकाशानन्द सरस्वती के गुरु का नाम अवतानन्द सरस्वती है। स्वयंप्रकाशानन्द सरस्वती के शिष्य महादेव १५ वेदान्ती ने उणादिकोश पर निजविनोदा नाम्नी व्याख्या लिखी है। इसका वर्णन हम पूर्व उणादिव्याख्याकार प्रकरण में कर चुके हैं।
काल- महादेव वेदान्ती ने सं० १७५०वि० में विष्णुसहस्रनाम की व्याख्या लिखी थी । यह हम उणादि प्रकरण में लिख चुके हैं। अतः
स्वयंप्रकाशानन्द का काल भी सं० १७१०-१७६० वि० के लगभग २० मानना उचित होगा।
२-अप्पा दीक्षित-अप्पा दीक्षित ने परिभाषार्थसंग्रह पर सारबोधिनी नाम्नी व्याख्या लिखी है।
परिचय-अप्पा दीक्षित ने अपना परिचय निम्न शब्दों में दिया है२५ १. द्र० यही भाग -३२१ पृष्ठ की टि० १।
२. इति श्रीमतपरहंसपरिव्राजकसर्वतन्त्रस्वतन्त्रश्रीमदतानन्दसरस्वतीचरगारविन्दभृङ्गायमाणस्य श्रीमत्स्वयंप्रकाशानन्दस्य कृती परिभाषार्थसंग्रहव्याख्यायां चन्द्रिकायां प्रथमाध्यायस्य चतुर्थ: पाद: । द्र०-मद्रास सूचीपत्र (पूर्वनिर्दिष्ट) पृष्ठ १०१८ ।
३. यही भाग, पृष्ठ २३३ । ४. यही भाग, पृष्ठ २३२ ।