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२/४१ परिभाषा-पाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता ३२१ अपने पिता का नाम रत्तमिरि दीक्षित लिखा है।' परिभाषार्थ संग्रह के प्रारम्भ के द्वितीय श्लोक में मातुल रामभंद्र मख़ को नमस्कार किया है। रामभद्र मन का वर्णन वैद्यनाथ शास्त्री ने इस प्रकार किया है
मूतिर्यस्य हि पाणिनिः परसहाभाष्यप्रबन्धा तथा वाक्यानां कृदपि स्वयं वितनुते वाग्यस्य दास्यं सदा । शिष्या यस्य विरोधिवादिमकुटीकुट्टाकवग्धाटिकास् (?) तस्मै मातुलराममखिने भूयो नमो मे भवेत् ।'
इससे स्पष्ट है कि वैद्यनाथ शास्त्री रामभद्र दीक्षित की बहिन का पुत्र है। रामभद्र मखी का पूरा वंश चित्र प्रथम भाग के ४६४ पृष्ठ पर देखें।
काल-उपर्युक्त वंशक्रम के अनुसार वैद्यनाथ शास्त्री का काल सं० १७५० वि० के लगभग होना चाहिए ।
एक कठिनाई–'उणादिसूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता' अध्याय में हम लिख चुके हैं कि महादेव वेदान्ती ने सं० १७५० वि० में विष्णसहस्रनाम की व्याख्या लिखी है। महादेव वेदान्ती के गुरु का नाम १५ स्वयंप्रकाशानन्द सरस्वती है । इस स्वयंप्रकाशानन्द ने वैद्यनाथ शास्त्री कृत परिभाषासंग्रह पर चन्द्रिका नाम्नी टीका लिखी है। इस दृष्टि से वैद्यनाथ शास्त्री का काल सं० १७५० वि० से कुछ पूर्व -होना चाहिए। __ परिभाषावृत्ति-वैद्यनाथ शास्त्री कृत परिभाषावृत्ति हमने २० साक्षात् नहीं देखी । अतः इसके विषय में आधिकारिक रूप से तो कुछ नहीं कह सकते, तथापि इस वृत्ति की अन्तिम पुष्पिका से ज्ञात
१. इति रत्नगिरिदीक्षितपुत्रवैद्यनाथशास्त्रिण: कृतिषु परिभाषार्थसंग्रहे प्रथमाध्यायस्य प्रथमः पादः । अडियार का हस्तलेख, संख्या ४८३ ।
२. पडियार-हस्तलेख संग्रह, व्याकरणविभागीय सूचीपत्र, हस्तलेख संख्या २५ ४८३ के विवरण में उद्धृत पाठ।
३. यही भाग, पृष्ठ २३२ । ४. यही भाग, पृष्ठ २३२ ।
५. इति श्रीमद्रत्नगिरिदीक्षितपुत्रवैद्यनाथशास्त्रिणः कृतिषु परिभाषार्थसंग्रह न्यायमूलाः परिभाषा: समाप्ताः । मद्रास द्र-सूचीपत्र भाग ३ (व्याकरण विभाग) सन् १९०६, पृष्ठ १०१७ ।
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