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परिभाषा - पाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता
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की भूमिका पृष्ठ १६ - १७ । हमने उसी के आधार पर संक्षिप्त परिचय दिया है ।
श्रीमान शर्मा कृत विजया टिप्पणी म० म० काशीनाथ अभ्यङ्कर द्वारा सम्पादित परिभाषा संग्रह में पृष्ठ २७३ - २६२ तक छप चुकी है। २ - रामभद्र दीक्षित (सं० १७४४ वि० )
सीरदेवीय परिभाषावृत्ति पर रामभद्र दीक्षित ने एक व्याख्या लिखी हैं। इसके अनेक हस्तलेख विभिन्न हस्तलेख - संग्राहक पुस्तकालयों में विद्यमान हैं ।
परिचय तथा काल - रामभद्र दीक्षित के काल के आदि के विषय उणादिप्रकरण (पृष्ठ २३४ - २३५) में लिख चुके हैं, अतः वहीं देखें । १०
३- प्रज्ञातनाम
डियार (मद्रास) के हस्तलेख संग्रह में अज्ञातकर्ता के परिभाषावृत्ति-संग्रह नामक एक हस्तलेख है । द्र० - व्याकरण विभाग, संख्या ५०१ । यह वृत्तिसंग्रह सीरदेवीय परिभाषावृत्ति का संक्षेपरूप है । परन्तु इसके अन्त में लिखित इति महामहोपाध्यायं सीरदेवकृतौ १५ परिभाषावृत्तिः समाप्ता पाठ सन्देह उत्पन्न करता है ।
इसी प्रसंग में आगे संख्या १० पर निर्दिष्ट वैद्यनाथ शास्त्रीकृत परिभाषार्थ संग्रह भी द्रष्टव्य है ।
५. विष्णु शेष [ शेष विष्णु ] (सं० १५०० - १५५० वि० )
विष्णु शेष ( शेष विष्णु) ने पाणिनीय सम्प्रदाय के सम्बद्ध परि- २० भाषा पाठ पर 'परिभाषाप्रकाश' नाम की एक वृत्ति लिखी हैं । इसका एक हस्तलेख भण्डारकर प्राच्यविद्या शोध प्रतिष्ठान पूना के संग्रह में है । द्र० सूचीपत्र (सन् १९३८) संख्या ३०० ( पृष्ठ २३३) । परिभाषा - प्रकाश के आरम्भ में विष्णु शेष ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है
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शेषावतंसं शेषांशं जगत्त्रयपूजितम् । चक्रपाणि तथा नत्वा पितरं कृष्णपण्डितम् ॥ २॥ भ्रातरं च जगन्नाथं विष्णुशेषेण धीमता । परिभाषाप्रकाशोऽयं क्रियते धीमतां सुदे ॥३॥
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