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________________ २/२ शब्दों के धातुजत्व और धातु के स्वरूप पर विचार । एकविधत्व-ऐन्द्र आदि कतिपय प्राचीन व्याकरण-प्रवक्ताओं के मत में समस्त शब्द अर्थवत्त्व के कारण एकविध ही माने गये है।' त्रिधा विभाग की युक्तता-पदों के स्वरूप की दृष्टि से उन्हें नाम (सुबन्त) आख्यात (तिङन्त) और अव्यय (उभयविध विभक्ति से रहित) तीन विभागों में ही बांटा जा सकता है । इसलिए पदों का ५ त्रिधा विभाग युक्ततम है। नाम शब्दों का त्रेधा विभाग-नाम शब्द यौगिक, योगरूढ और रूढ भेद से तीन प्रकार के माने जाते हैं। नाम शब्दों का अन्यथा विभाग-नाम शब्द का एक अन्य प्रकार से भी विभाग किया जाता है-जातिशब्द, गुणशब्द, क्रियाशब्द और १० यद्च्छाशब्द'। यद्च्छा शब्द संस्कृत भाषा के अङ्ग नहीं-यद्च्छा शब्द संस्कृत भाषा में उत्तरकाल में प्रविष्ट हुए हैं। ये संस्कृत भाषा के मूल शब्द नहीं हैं । अत एव कतिपय वैयाकरण प्राचीन परम्परा के अनुसार यदृच्छा शब्दों की गणना न करके तीन प्रकार के ही शब्द मानते १५ हैं। आचार्य प्रापिशलि और पाणिनि भी यदृच्छा शब्दों को संस्कृत भाषा का अङ्ग नहीं मानते । अतएव वे कहते हैं यदृच्छाशक्तिजानुकरणा वा यदा दीर्घाः स्युः । प्रा० शिक्षा ६।६॥ यदृच्छाशब्देऽशक्तिजानुकरणे वा यदा दीर्घाः स्युः। पा० शिक्षा ६॥६॥ २० यहां 'यदा पद यदच्छा शब्दों का अनभिमतत्व व्यक्त करता है। ये यदच्छा शब्द अर्थात् नितान्त रूढ शब्द संस्कृत भाषा का अङ्ग न होने से अनित्य माने जाते हैं। कृत्रिम टि घ आदि संज्ञाओं का १. द्र- 'नक पदजातम् । यथा—अर्थः पदमैन्द्राणामिति ।' निरुक्तदुर्गवृत्ति १।११ पृष्ठ १०, आनन्दाश्रम, पूना। २. चतुष्टयी शब्दानां प्रवृत्ति:-जातिशब्दाः, गुणशब्दाः, क्रियाशब्दाः, यदृच्छाशब्दाश्चतुर्थाः । ऋलक, (प्रत्या० २) सूत्रभाष्य । ३. त्रयी च शब्दानां प्रवृत्ति:-जातिशब्दा गुणशब्दाः क्रियाशब्दा इति । न सन्ति यदृच्छाशब्दाः । ऋलक्, (प्रत्या० २) सूत्रभाष्य । ४. स्वामी दयानन्दा सरस्वती शब्दों के नित्य अनित्य दो भेद मानते हैं। १ द्र०-ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका 'वेदनित्यत्व-प्रकरण' पृष्ठ ३१, रालाकट्र० सं०।।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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