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________________ ३१४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास हैं । यह लघुवृत्ति और ललितावृत्ति के नाम से प्रसिद्ध है।' पुरुषोत्तमदेव के देश-काल आदि के विषय में इस ग्रन्थ के प्रथम भाग पृष्ठ ४२८-४२६ (च० सं०) पर लिख चुके हैं। परिभाषावृत्ति का वैशिष्टय-यह वृत्ति पूर्वनिर्दिष्ट व्याडीय ५ परिभाषापाठ पर है। पुरुषोत्तमदेव ने अपने ज्ञापकसमुच्चय के प्रारम्भ में इस वृत्ति को वृद्ध-सम्मता कहा है। परिभाषाविवरण - गोंडल (सौराष्ट्र) की रसशाला औषधाश्रम के हस्तलेख-संग्रह में परिभाषा-विवरण नामक एक ग्रन्थ है (द्र० सूचीपत्र, व्याकरण विभाग, सं० ३३)। इस ग्रन्थ के अन्त में लेखन१० काल सं० १५८४ चैत्रशुधेकादश्यां निर्दिष्ट है। इस विवरण के रचयिता का नाम अज्ञात है । इसमें भी परिभाषाओं का वही क्रम हैं, जो पुरुषोत्तमदेव की वृत्ति में है। केवल इतना अन्तर है कि पुरुषोत्तमदेव की वृत्ति में १२० परिभाषाएं व्याख्यात हैं, इसमें ११५ हैं। इस हस्तलेख के पत्रा ४ पर यदाह मिहिरः-मनिवचनविरोधे यक्तिता केन चिन्त्या' इति पाठ उपलब्ध होता है। यह पाठ इसी रूप में पुरुषोत्तमदेव की परिभाषा वृत्ति में ७वीं परिभाषा की व्याख्या में मिलता है । अतः सन्देह होता है कि उक्त परिभाषाविवरण का हस्तलेख कदाचित् पुरुषोत्तमीय परिभाषावृत्ति का हो। दोनों की तुलना आवश्यक है। हमने जब गोण्डल का उक्त हस्तलेख देखा था, २. उस समय हमारे पास पुरुषोतमदेव की परिभाषावृत्ति नहीं थी। ज्ञापक-समुच्चय–पुरुषोत्तमदेव ने ज्ञापक-समुच्चय नाम का एक १. इति श्रीपाणिन्याचार्यविरचितानां परिभाषाणां लघुवृत्तिः सम्पूर्वा । काशीनाथ अभ्यङ्कर, परिभाषा-संग्रह, पृष्ठ १६ । इति वैयाकरणगजपञ्चाननश्रीपुरुषोत्तमदेव विरचिता ललिताख्या परिभाषावृत्तिः समाप्ता । राजशाही (बंगाल), पृष्ठ ५६ । २. यश्चक्रे परिभाषाणां वृत्ति वृद्धसम्मताम् । ज्ञापकसमुच्चय, पृष्ठ ५७ । ३. परिभाषाविवरणश्चायं समाप्तः । सं० १५८४ चैत्रशुद्धय कादश्यां रामानुजेन परिभाषाविवरणमलेखि । ४. बृहत्संहिता, अ० १। ३० ५. परिभाषावृत्ति, पृष्ठ ६, परिभाषासंग्रह, पृष्ठ ११६ ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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