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परिभाषा-पाठके प्रवक्ता और व्याख्याता ३११ 'इति पाणिनीयाचार्यविरचितानां परिभाषाणां लघुवृत्तिः सम्पूर्णा'।
इन तीनों पाठों का मूल एक है, क्योंकि प्रारम्भ की परिभाषा तीनों में समान है । हां, परिभाषाओं के पाठ, पौर्वापर्य क्रम और संख्या में अन्तर है।
चतुर्थ पाठ-यह पाठ सीरदेव की परिभाषावृत्ति में उपलब्ध ५ होता है। इसमें १३३ परिभाषाएं है । इनमें १०२ परिभाषाएं ज्ञापकसिद्ध अथवा कात्यायनादि के वार्तिक रूप हैं । इनके अनन्तर ३१ परिभाषाएं न्यायसिद्ध हैं । ग्रन्थकार ने स्वयं कहा है-'प्रतः परं न्यायमूलाः परिभाषाः।' पृष्ठ १६४, काशी सं०, परिभाषासंग्रह, पृष्ठ २५६ । __ वैशिष्टय-इस पाठ का वैशिष्ट्य यह है कि इसमें अष्टाध्यायी के क्रम से ज्ञापित अथवा वार्तिकरूप परिभाषाओं का संग्रह है। इस लिए सर्वत्र इति "प्रथमः पादः, भूपादः, कारकपादः, इति प्रथमोऽध्यायः आदि पाठ उपलब्ध होते हैं।
'पञ्चम पाठ-यह पाठ नागेश भट्ट के परिभाषेन्दुशेखर में उप- १५ लब्ध होता है। इसमें १३३ परिभाषाए हैं। इस पाठ में परिभाषाओं का संग्रह भी कौमुदी आदि के अन्तर्गत सूत्रपाठ के समान लक्ष्य सिद्धि क्रम से किया है । सम्प्रति पाणिनीय वैयाकरणों में यही पाठ अध्ययना. ध्यापन में प्रचलित है । आधुनिक लेखकों ने इसी पाठ पर अपनी व्याख्याएं लिखी हैं । इस पाठ को प्राधान्येन पाश्रय करके लिखे गए २० व्याख्या-ग्रन्थों में परिभाषाओं की संख्या सर्वत्र समान नहीं है। यथा शेषाद्रिनाथ सुधी-विरचित परिभाषाभास्कर में ११० ही परिभाषाएं
व्याडीय परिभाषावृत्तिकार व्याडिप्रोक्त परिभाषापाठ पर किसी अज्ञातनामा वैयाकरण ने २५ एक वृत्ति लिखी है । इसके कई हस्तलेखों के आधार पर महामहोपाध्याय काशीनाथ अभ्यङ्कर परिभाषासंग्रह के प्रारम्भ में इस वृत्ति को प्रकाशित किया है। - परिभाषावृत्तिकार ने अपने देश काल, यहां तक कि स्वनाम का भी ग्रन्थ में निर्देश नहीं किया। अतः इसका देश काल आदि सर्वथा ३० अज्ञात है।