________________
३१० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ___ व्याडीय परिभाषापाठ के दो पाठ-महामहोपाध्यायजी द्वारा प्रकाशित व्याडीय परिभाषापाठ के जो दो ग्रन्थ छपे हैं, उन दोनों का पाठ भिन्न-भिन्न है। प्रथम पाठ में केवल ६३ परिभाषाएं हैं, दूसरे पाठ में १४० हैं। इनमें केवल संख्या का ही भेद नहीं है, परिभाषाओं का पौर्वापर्य तथा पाठभेद भी बहुत है।।
पुनः द्विविध पाठ-पाणिनीय वैयाकरणों द्वारा प्राश्रीयमाण परिभाषा-पाठ के सम्प्रति दो पाठ उपलब्ध होते हैं। एक पाठ है सीरदेव विरचित परिभाषावृत्ति में आश्रित, और दूसरा है परिभाषे
न्दुशेखर आदि में आश्रित। १० अब हम परिभाषाओं के विभिन्न पाठों के विषय में संक्षेप से लिखते हैं
प्रथम पाठ-इस पाठ में ६३ परिभाषा-सूत्र हैं। प्रथम प्रथ परिभाषासूचनं व्याख्यास्यामः सूत्र को मिलाने पर ६४ सूत्र हो जाते
हैं। इस पाठ की प्रथम परिभाषा अर्थवद्ग्रहणे नानर्थकस्य, और १५ अन्तिम कृद्ग्रहणे गतिकारकपूर्वस्यापि ग्रहणम है।
इस पाठ पर एक टीका भी छपी है। व्याख्याकार का नाम अज्ञात है।
द्वितीय पाठ - द्वितीय पाठ में १४० परिभाषाए हैं। इसमें भी प्रथम परिभाषा तो अर्थवद्ग्रहणे नानर्थकस्य ग्रहणम् ही (पाठभेद से) न है, परन्तु अन्तिम परिभाषा ज्ञापकसिद्धन सर्वत्र है । इस पाठ के
अन्त में पुष्पिका है--इति व्याडिविरचिताः पाणिनीयपरिभाषाः समाप्ताः।
तृतीय पाठ-यह पाठ पुरुषोत्तमदेव की परिभाषावृत्ति में उपलब्ध होता है। इसमें प्रथम परिभाषा तो अर्थवद्ग्रहणे नानर्थकस्य २५ ही है, परन्तु अन्तिम परिभाषा भवति व्याख्यानतो विशेषप्रतिपत्ति
नहि संदेहादलक्षणम् है । इसमें १२० परिभाषाएं हैं । इस परिभाषापाठ के किन्हीं हस्तलेखों के अन्त में इस प्रकार पाठ है
२०
प्रथम भाग, पृष्ठ २२६-२३० (च० सं०), तथा प्रत्याहारसूत्रों के लिए पृष्ठ २३०-२३२ (च० सं०)।