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________________ परिभाषा-पाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता ३०६ था, अथवा उसके स्वीय तन्त्र से, यह कहना कठिन है (व्याडिप्रोक्त शब्दानुशासन का वर्णन हम इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में पृष्ठ १४३१४५ च० सं० पर कर चुके हैं), पुनरपि व्याडीय परिभाषा के जो दोनों ग्रन्थ महामहोपाध्याय काशीनाथ जी ने परिभाषासंग्रह में प्रकान शित किये हैं । उनमें अकृतव्यूहाः पाणिनीयाः' परिभाषा का निर्देश ५ होने से उक्त मुद्रित पाठों का सम्बन्ध पाणिनीय तन्त्र से ही हैं, यह स्पष्ट है । इसकी पुष्टि द्वितीय पाठ के अन्त में विद्यमान इति व्याडिविरचिताः पाणिनीयपरिभाषाः समाप्ताः पाठ से, तथा रायल एशियाटिक सोसाइटी बंगाल के संग्रह (संख्या १०२०४) में विद्यमान परिभाषापाठ के 'व्याडिविरचिता पाणिनीयपरिभाषा' पाठ से भी १० होती हैं। व्याडीय परिभाषापाठ का नाम-परिभाषा संग्रह के प्रारम्भ में मुद्रित व्याडीय परिभाषापाठ पर परिभाषा-सूचनम् नाम निर्दिष्ट है इसकी व्याख्या में भी___ 'अथ परिभाषासूचनम् व्याख्यास्यामः । अथेत्ययमधिकारार्थः। १५ परिभाषासूचनं शास्त्रमधिकृतम् वेदितव्यम्।' पृष्ठ १ । इस शास्त्र का नाम परिभाषासूचन लिखा है महामहोपाध्यायजी की भूल-परिभाषासूचन की व्याख्या का जो पाठ उदधृत किया है, उससे स्पष्ट है कि अथ परिभाषासूचनं व्याख्यास्यामः यह इस ग्रन्थ का प्रथम सूत्र है। महामहोपाध्यायजी ने २० इसे व्याख्याकार का वचन समझ कर इसे सूत्ररूप में नहीं छापा है। सम्भवतः उन्हें यह भ्रम पाणिनीय तन्त्र के शब्दानुशासनम की प्राधनिक व्याख्यानों के आधार पर हुआ होगा, जिन में अथ शब्दानुशासनम् को भाष्यकारीय वचन कहा है। . १. द्रष्टव्य-प्रथम पाठ (परिभाषासूचनम्) संख्या ६५, दूसरा पाठ २५ संख्या ८४ । २. राजशाही (बंगाल) मुद्रित पुरुषोत्तमदेवीय परिभाषावृत्ति की भूमिका पृष्ठ २६ । ३. यह पाणिनीयाष्टक का आदिम सूत्र है । इसके लिए देखिए यही ग्रन्थ
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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