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________________ ३०८ . संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास व्याडिमुनिना विरचिता इत्याहुः ।" २-भास्कर अग्निहोत्री अपरनाम हरिभास्करकृत परिभाषाभास्कर के अन्त में लिखा है केचित्तु व्याख्यानतो विशेषप्रतिपत्तिरित्यादि सर्वाः परिभाषा ५ व्याडिमुनिना विरचिता इत्याहुः ।' ३-इण्डिया आफिस लन्दन के पुस्तकालय में भास्कर भट्ट के किसी अन्तेवासी विरचित परिभाषावृत्ति का एक हस्तलेख है । उसके प्रारम्भ में लिखा है'केचित् व्याख्यानत इति परिभाषा व्याडिमुनिविरचिता इत्याहुः । ४-ट्रिवेण्ड्रम से प्रकाशित नीलकण्ठ दीक्षित की परिभाषापाठ की लघुवृत्ति के आरम्भ में लिखा है'केचित्तु व्याख्यानत इत्यादिपरिभाषा व्याडिविरचिता इत्याहुः ।' ५-जम्मू के रघुनाथ मन्दिर के हेस्तलेख-संग्रह में व्याडीय परिभाषा-वृत्ति नाम का एक ग्रन्थ विद्यमान है । द्रष्टव्य-सूचीपत्र १५ पृष्ठ ३७। ६-महामहोपाध्याय काशीनाथ अभ्यंकर ने उपलभ्यमान समस्त परिभाषापाठों, तथा उनकी वृत्तियों का परिभाषा संग्रह नाम से एक संग्रह प्रकाशित किया है। उनके इस संग्रह में प्रथम ग्रन्थ हैव्याडिकृतं परिभाषासूचनम्, और दूसरा व्याडिपरिभाषा-पाठ। इनमें प्रथम ग्रन्त्र सव्याख्या है । द्वितीय ग्रन्थ के अन्त में लिखा है'इति व्याडिविरचिताः पाणिनीयपरिभाषाः समाप्ताः।' पृष्ठ४३। इन सब प्रमाणों से स्पष्ट है कि व्याडि ने किसी परिभाषा का संग्रह अथवा प्रवचन किया था। व्याडि के परिभाषा पाठ का सम्बन्ध साक्षात् पाणिनीय तन्त्र से १. संग्रह संख्या ३२७७, ३२७२ । २. परिभाषा संग्रह (पूना), पृष्ठ ३७४ । ३. सूचीपत्र, भाग १, खण्ड २, ग्रन्थ सं० ६७३ । ४. भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीटयू ट पूना, सन् १९६७ ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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