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________________ परिभाषा-पाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता ३०७ परिभाषापाठ के विषय में इतना सामान्य निर्देश करने के पश्चात् परिभाषापाठ के विशिष्ट प्रवक्तामों और व्याख्याताओं का वर्णन करते हैं १. काशकृत्स्न (३१०० वि० पूर्व) । काशकृत्स्न प्राचार्यप्रोक्त व्याकरणशास्त्र का वर्णन हम पूर्व ५ (भाग १, पृष्ठ ११५-१३३; च० सं०) कर चुके है। काशकृत्स्नप्रोक्त धातुपाठ के व्याख्याता चन्नवीर कवि ने अन्य काशकृत्स्नीय सूत्रों के समान तुद (५१) धातु के व्याख्यान में 'सकृद बाधितो विधिर्बाधित एव" एक वचन पढ़ा है। अन्य प्राचार्यों के व्याकरणों में कुछ भेद से यह वचन परिभाषापाठ में मिलता है। अतः विचारणीय १० है कि यह वचन व्याकरणशास्त्र का सूत्र है, अथवा काशकृत्स्न ने भी स्वशास्त्रसंबद्ध किसी परिभाषा पाठ का प्रवचन किया था ? काशकृत्स्नीय धातुपाठ और उणादिपाठों की उपस्थिति में यह सम्भावना अधिक युक्तिसिद्धि प्रतीत होती है कि उसने किसी परिभाषा पाठ का भी प्रवचन किया था। २-व्याडि (२९५० वि० पूर्व) पाणिनीय वैयाकरणों द्वारा आश्रित परिभाषा-वचन यद्यपि पूर्वाचार्यों के सूत्ररूप हैं, तथापि इनको एक व्यवस्थित रूप के संगृहीत करने, और पाणिनीय तन्त्र के अनुरूप इनके स्वरूप को अभिव्यक्त करनेवाला कोन प्राचार्य है ? इस पर विचार करने से विदित होता २० है कि सम्भवतः प्राचार्य व्याडि ने परिभाषापाठ को प्रथमतः व्यवस्थित रूप दिया हो । हमारी इस सम्भावना में निम्न हेतु हैं १-डी० ए० वी० कालेज लाहौर के लालचन्द पुस्तकालय (वर्तमान में विश्वेश्वरानन्द शोध संस्थान होशियारपुर) में परिभाषापाठ के दो हस्तलेख विद्यमान हैं । इनके अन्त में लिखा है'केचित्तु व्याख्यानतो विशेषप्रतिपत्तिरित्यादयः सर्वाः परिभाषा १. काशकृत्स्नपातुव्यास्मानम् पृष्ठ १५६ । २५
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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