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परिभाषा - पाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता
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योरन्तरङ्ग बलवत् विप्रतिषेधसूत्रे (१।४।२ ) इयं परिभाषा भाष्यकारेण पठिता ।' परिभाषावृत्ति, पृष्ठ २१ ( राजशाही सं० ), परिभाषा संग्रह (पूना) पृष्ठ १३० ।
सीरदेव भी इसी का अनुमोदन करता है ।'
४ - मिश्रित - कतिपय परिभाषाएं ऐसी भी हैं, जिनका एकदेश सूत्रकार द्वारा ज्ञापित होता है, और एकदेश न्यायसिद्ध है । यथा
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'सति शिष्टस्वरबलीयस्त्वमन्यत्र विकरणेभ्यः । इस परिभाषा का पूर्वभाग न्यायसिद्ध है, और अन्यत्र विकरणेभ्यः प्रश तास्यानुदात्तेदि० (६।१।१८६) सूत्र द्वारा ज्ञापित है।
कतिपय मिश्रित परिभाषाएं ऐसी भी हैं, जिनका एकदेश सूत्र - १० कार द्वारा ज्ञापित होता है, और शेष अंश पूर्वाचार्यों द्वारा वचनरूप में पठित होता है । यथा
'गतिकारकोपपदानां कृद्भिः सह समासवचनं प्राक्सुबुत्पत्तेः' परिभाषा का 'उपपदांश' तथा 'सुबुत्पत्ति से पूर्व समासविधान' भाग उपपदमति सूत्र के अतिङ ग्रहण से ज्ञापित होता है, शेष अंश पूर्वा- १५ चार्यों का वाचनिक था, यह स्वीकार कर लिया है ।"
परिभाषाओं का मूल
पाणिनीय तथा इतर वैयाकरणों द्वारा आश्रीयमाण परिभाषात्रों का मूल क्या है ? यह निश्चित रूप से नहीं कह सकते । सामान्यतया इतना ही कह सकते हैं कि इन परिभाषाओं का मूल प्राचीन वैया- २० करणों के सूत्रपाठों के विशिष्ट सूत्र हैं ।
१. इयं परिभाषा विप्रतिषेधसूत्रे ( १ १ ४ १ २ ) भाष्ये न्यासे च पठिता । परिभाषावृत्ति, पृष्ठ ४५, परिभाषासंग्रह (पूना) पृष्ठ १८६ |
२. द्रष्टव्य - गतिकारकोपपदानामिति परिभाषा पूर्वाचार्यैः पठिता, सूत्रकारेणाप्यतिङ ग्रहणेन तद्द ेश श्राश्रिता । पद० भाग १, पृष्ठ ४०३ । तुलना २५ करो – 'कृद्ग्रहणे गतिकारकपूर्वस्यापि ग्रहणं भवति' के विषय में कैयट लिखता है – पूर्वाचार्यैस्तावदेषा परिभाषा पठिता, इह त्वनन्तरग्रहणेन सैवाभ्यनुज्ञायते । प्रदीप ६ । २ । ४६ । इस पर नागेश कहता है- एकदेशानुमितिद्वारा कृत्स्ना परिभाषा ज्ञाप्यते ।