SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छब्बीसवां अध्याय परिभाषा-पाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता । पाणिनीय तथा उसके उत्तरवर्ती शब्दानुशासनों से संबद्ध परिभाषा-पाठ नामक एक संग्रह मिलता है। इन परिभाषा-पाठों में परिभाषाओं की संख्या में कुछ न्यूनाधिक्य, स्व-स्वतन्त्रानुकूल कुछ पाठभेद और क्रम-भेद दिखाई पड़ता है, अन्यथा सब कुछ प्रायः एक जैसा है। परिभाषा का लक्षण-वैयाकरण परिभाषा का लक्षण 'अनियमप्रसंगे नियमकारिणी परिभाषा" ऐसा करते हैं। स्वामी दयानन्द १० सरस्वती ने अपने पारिभाषिक की भूमिका में 'परितो व्यापृतां भाषां परिभाषां प्रचक्षते" ऐसा लक्षणं किया है। पहले लक्षण के अनुसार अनियम की प्राप्ति होने पर नियम करनेवाले सूत्र वा नियम 'परिभाषा' कहाते हैं। द्वितोय लक्षण के अनसार जो सूत्र अथवा नियम सारे शास्त्र में आगे-पीछे सर्वत्र अपने नियमों का पालन करावें, वे 'परिभाषा' कहाते हैं । महाभाष्यकार ने परिभाषा को भी एक विशिष्ट प्रकार का अधिकार माना है। षष्ठी स्थानेयोगा (११११४८) सूत्र की व्याख्या में लिखा है 'अधिकारो नाम त्रिप्रकारः । कश्चिदेकदेशस्थः सर्व शास्त्रमभिज्व २० लयति, यथा प्रदीपः सुप्रज्वलितः सर्व वेश्म अभिज्वलयति ।' अर्थात् अधिकार तीन प्रकार का होता है। उनमें कोई एक देश १. द्र०-परिभाषेयं स्थानिनियमार्था अनियमप्रसङ्गे नियमो विधीयते । काशिका १११॥३॥ २. तुलना करो-परितो व्यापृता भाषा परिभाषा। सा ह्यकदेशस्था । सर्व शास्त्रमभिज्वलयति यथा वेश्म प्रदीप इति । पुरुषोत्तम-परिभाषावृत्ति के • 'क' संज्ञक हस्तलेख का पाठ टिप्पणी में द्रष्टव्य, राजशाही (बंगाल) संस्करण ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy