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संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास
४- श्रानन्द कवि
५- दण्डी
६- वात्स्यायन ७- शाश्वत
इनका निर्देश वाररुच लिङ्गानुशासन के श्रज्ञातनामा टीकाकार की टीका के ७ वें श्लोक में मिलता है। यह श्लोक हम पूर्व ( भाग २, पृष्ठ २८२) लिख चुके हैं । यह वररुचि के लिङ्गानुशासन की उक्त वृत्ति में कात्यायन का निर्देश होने से स्पष्ट है कि यह कात्यायन वररुचि कात्यायन से भिन्न है ।
८ - रामनाथ विद्यावाचस्पति — इसका उल्लेख लिङ्गादि सह टिप्पणी के नाम से मिलता है । हर्षीय लिङ्गानुशासन के सम्पादक वे० वेङ्कटराम शर्मा ने इसे स्वतन्त्र पुस्तक माना है । पं० गुरुपद हालदार का मत है कि यह अमर कोष की टीका है।'
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E - लिङ्गकारिका - इसका उद्धरण वर्धमान ने गणरत्न महो१५ दधि में दिया है ।'
१० - जयनन्द सूरि - इसके ग्रन्थ का नाम लिङ्गानुशासनवृत्त्युद्धार है । ग्रन्थ नाम से यह स्वतन्त्र ग्रन्थ प्रतीत नहीं होता । यह अप्राप्य भी है ।
११ - नन्दी – नन्दीकृत लिङ्गानुशासन ग्रन्थ उपलब्ध नहीं २० होता ।
१२ - लिङ्ग प्रबोध -क्या लिङ्गबोध व्याकरण इसका नामान्तर हो सकता है ? लिङ्गबोध व्याकरण लक्ष्मी वेङ्कठश्वर प्रेस बम्बई से सं० १६८० वि० में छपा था ।
१३ - विद्यानिधि - डा० प्रोटो फ्रैंक ने एक तुलनात्मक पट्टिका २५ बनाई थी । उसमें उसने लिखा था कि हर्षवर्धन हेमचन्द्र, यक्षवर्मा एवं श्री वल्लभ पर विद्यानिधि का प्रभाव था ।
१. व्याकरण दर्शनेर इतिहास, भाग १, पृष्ठ ४२१ । २. वही, पृष्ठ ४२१ ।