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लिङ्गानुशासन के प्रवक्ता और व्याख्याता
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लिङ्गनिर्णय-अडियार के पुस्तकालय में किसी अज्ञातनामा लेखक का लिङ्गनिर्णय ग्रन्थ विद्यमान है। देखो-सूचीपत्र, व्याकरणविभाग, सं०४१२।
२४-नवकिशोर शास्त्री (सं० १९८८ वि०) सारस्वत व्याकरण में लिङ्गानुशासन नहीं है। चौखम्बा ग्रन्थमाला ५ काशी से सं० १९८८ में प्रकाशित सारस्वतचन्द्रिका के सम्पादक पं० नवकिशोर शास्त्री ने सारस्वत-व्याकरण की इस न्यूनता की पूर्ति के लिये पाणिनीय लिङ्गानुशासन के आधार पर लिङ्गानुशासन सूत्रों की रचना की । और उन पर स्वयं वृत्ति तथा 'चक्रधर' नाम्नी टिप्पणी लिखी। इसका संकेत सम्पादक ने स्वयं चन्द्रिका के उत्तरार्ध १० में अपनी भूमिका के अन्त में किया है।
२५–सरयू प्रसाद व्याकरणाचार्य इनके विषय में डा० रामअवध पाण्डेय ने यह परिचय दिया है-'ये संस्कृत कालेज बलिया के अध्यापक हैं। इन्होंने लिङ्गानुशासन पर एक पुस्तक लिखी है,जो अभी अप्रकाशित है। इस पर पण्डित जी । की स्वोपज्ञ वृत्ति भी है । इसकी विशेषता यह है कि १८-२० श्लोकों में पूरा पाणिनीय लिङ्गानुशासन आ गया है।'
निर्णीतरूप से ज्ञात लिङ्गानुशासन के प्रवक्ताओं और उपलब्ध लिङ्गानुशासनों का संक्षिप्त निर्देश करके अब हम उन प्राचार्यों वा लिङ्गबोधक ग्रन्थों का निर्देश करते हैं, जिनके सम्बन्ध में साधारण १० सूचनामात्र प्राप्त होती हैअनिर्णीत लिङ्गप्रवक्ता वा अविज्ञात लिङ्गानुशासन
१-जैमिनिकोश-कार २-कात्यायन ३-व्यास ___
२५ १. सम्मेलन-पत्रिका, वर्ष ४६ अंक ३। ..