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________________ २६८ . संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ग्रन्थ के प्रारम्भ में लिखा है 'वाणी प्रणम्य शिरसा बालानां ज्ञानसिद्धये । स्त्रीपुन्नपुंसकं स्वल्पं वक्ष्यते शास्त्रनिश्चितम् ॥ तोरूरिविष्णुविदुषः सूनुना रामसूरिणा। विरच्यते बुधश्लाघ्यं लिङ्गनिर्णयभूषणम् ॥' अन्त में पाठ है'इति रामसूरिविरचितायां बालकौमुद्यां लिङ्गनिर्णयः समाप्तः।' इन पाठों से ज्ञात होता है कि रामसूरि ने कोई 'बालकौमुदी' ग्रन्थ बनाया था। उसी का एकदेश यह लिङ्गनिर्णयभूषण है। अडियार हस्तलेख के उपरिनिर्दिष्ट पाठानुसार रामसूरि के __ पिता का नाम 'तोरूरि विष्ण' था। मद्रास के सूचीपत्रानुसार तोनोरि विष्णु' है । अन्यत्र 'तोपुरी विष्णु' नाम मिलता है। यह ग्रन्थ सुदर्शन प्रेस काञ्ची से प्रकाशित हुआ था। इसका सम्पादन सन् १९०६ में अनन्ताचार्य ने किया था। २१-वेङ्कटरङ्ग : वेङ्कटरङ्ग विरचित लिङ्गप्रबोध नाम के ग्रन्थ के दो हस्तलेख अडियार के पुस्तकालय में सुरक्षित हैं। द्र०-सूचीपत्र-व्याकरणविभाग, संख्या ४१०,४११। २२-२३-अज्ञातनामा लिङ्गकारिका-हर्षीय लिङ्गानुशासन के सम्पादक वे० वेङ्कट राम शर्मा ने अपनी निवेदना पृष्ठ ३४. में किसी अज्ञातनामा लेखक के लिङ्गकारिका नामक ग्रन्थ का निर्देश किया है। और लिखा है कि इसे वर्धमान ने गणरत्नमहोदधि में उद्धृत किया है। यदि यह निर्देश ठीक हो, तो इस लिङ्गकारिका का काल सं० ११६७ वि० से पूर्व २५ होगा। ऐसी अवस्था में यह भी सम्भव है कि यह कारिका वररुचि प्रभृति प्राचीन आचार्यों में से किसी की हो।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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