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लिङ्गानुशासन के प्रवक्ता मौर व्याख्याता
१७ - मलयगिरि (सं० १९८८ - १२५० वि० )
मलयगिरि ने साङ्गोपाङ्ग व्याकरण का प्रवचन किया था। इस का वर्णन हम प्रथमभाग में 'आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण' नामक १७ वें अध्याय में कर चुके हैं। अतः उसके अवयवरूप लिङ्गानुशासन का प्रवचन भी उसने अवश्य किया होगा ।
રૂદ
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१८. मुग्धबोध-संबद्ध लिङ्गानुशासन
'वोपदेव का संस्कृत व्याकरण को योगदान' नामक शोधप्रबन्ध की लेखिका डा० शन्नोदेवी ने मुग्धबोध से सम्बद्ध लिङ्गानुशासन पर विस्तार से विचार किया है ( द्र० शोध प्रबन्ध, पृष्ठ ४४० - ४४२ ) । उनके लेखानुसार इन सूत्रों का संकलन गिरीशचन्द्र विद्यारत्न ने किया था ।
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१९ - हेलाराज (वि०
१४वीं से पूर्व )
हेलाराजकृत लिङ्गानुशासन का निर्देश सायण ने अपनी माधवीय धातुवृत्ति' में, तथा भट्टोजि दीक्षित ने प्रौढमनोरमा' में किया है। हेलाराज ने धातुवृत्ति की रचना भी की थी। द्र० – माघवीय धातु- १५ वृत्ति, पृष्ठ ३७ ।
इसके विषय में इससे अधिक हमें कुछ ज्ञात नहीं ।
२० -- रामसूरि
रामसूरि- विरचित लिङ्ग निर्णयभूषण नाम का एक ग्रन्थ मद्रास के राजकीय हस्तलेख संग्रह, तथा अडियार के पुस्तकालय में सुरक्षित है । २०
१. प्रसिष्णुरिति हेलाराजीये लिङ्गनिर्देश प्रयुज्यते । पृष्ठ ११६, ग्रसु धातु पर।
२. 'प्रयुज्यते' के स्थान पर 'प्रयुक्तम्' पाठ भेद से । भाग २, पृष्ठ ५७६