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उन्नीसवां अध्याय शब्दों के धातुजत्व और धातु के स्वरूप पर विचार शब्दों का वर्गीकरण-प्राचीन भारतीय भाषाविदों ने संस्कृत भाषा के पदों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया है। उनमें प्रधान वर्गीकरण इस प्रकार हैं
चतुर्षा विभाग यास्क तथा कतिपय प्राचीन वैयाकरणों ने पदों को चार विभागों में बांटा हैं । वे विभाग हैं-नाम, पाख्यात, उपसर्ग
और निपात।' __ कतिपय आचार्य कर्मप्रवचनीयों को पृथक् गिन कर पांच विभाग दर्शाते हैं । अन्य गतिसंज्ञकों को भी पृथक् मान कर छः विभाग मानते १० हैं। वस्तुतः कर्मप्रवचनीयों और गतिसंज्ञकों का निपातों और उपसर्गों में अन्तर्भाव हो जाता है । अतः उनकी पृथक गणना की आवश्यकता नहीं है।
स्वर आदि अव्ययों का अन्तर्भाव-पाणिनीय तन्त्र के अनुसार स्वर आदि अव्यय निपातों से बहिर्भूत माने गए हैं। पाणिनि के मत १५ में अद्रव्यवाची चादि शब्दों की निपात संज्ञा होती है। स्वर आदि अव्ययों में अनेक शब्द द्रव्यवाची हैं । अतः पाणिनि के मत में स्वर्
आदि शब्दों का निपातों में समावेश नहीं हो सकता। पदों के चतुर्धा विभाग करनेवाले प्राचीन आचार्य स्वर् आदि अव्ययों का निपातों में किस प्रकार समावेश करते थे, यह सम्प्रति अज्ञात है।
२० १. चत्वारि पदजातानि–नामाख्यातोपसर्गनिपाताश्च । निरुक्त ११॥ नामाख्यातोपसर्गनिपाताश्चेति वैयाकरणा: । नि० १३।६।। चत्वारि पदजातानि नामाख्यातोपसर्गनिपाताश्च । महाभाष्य अ० १, पा० १ प्रा० १॥
२. द्र०-नापि पञ्च षड् वा गतिकर्मप्रवचनीयभेदेनेति । निरुक्त दुर्गवृत्ति १३१, पृष्ठ १८, आनन्दाश्रम, पूना ।
२५ ३. स्वरादिनिपातमव्ययम् । अष्टा० १३१॥३७॥ ४. चादयोऽसत्त्वे । अष्टा० ११४५७।।