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________________ ५ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास १३ - भोजदेव (वि० सं० २०७५-१११० ) श्री भोजदेव ने स्वतन्त्र संबद्ध लिंङ्गानुशासन का भी प्रवचन किया था । इसका निर्देश हर्षलिङ्गानुशासन के सम्पादक श्री वेंकट - शर्मा ने निवेदना पृष्ठ ३४ पर किया है। यह लिङ्गानुशासन हमारे देखने में नहीं आया । २९४ १४ - बुद्धिसागर ( वि० सं० १०८० ) बुद्धिसागर सूरि के पञ्चग्रन्थी शब्दानुशासन का उल्लेख इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में 'आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण' नामक १७वें अध्याय में कर चुके हैं। उन पञ्च ग्रन्थों में लिङ्गानु१० शासन भी अन्यतम है । बुद्धिसागर का लिङ्गानुशासन हमारी दृष्टि में नहीं आया । हां, आचार्य हेमचन्द्र ने स्वीय लिङ्गानुशासन के स्वोपज्ञ - विवरण, और अभिधानचिन्तामणि कोश के स्वोपज्ञ विवरण में इसे अनेक स्थानों पर उद्धृत किया है । यथा १५ १. मन्थः गण्डः । पुन्नपुंसकोऽयमिति बुद्धिसागरः । पृष्ठ ४, पं० ५ । २. जठरं त्रिलिङ्गोऽयमिति बुद्धिसागरः । पृष्ठ १०० पं० १७, १८ । , ३. शंकु - पुंसि व्याडि, स्त्रियां वामनः पुन्नपुंसकोऽयमिति २० बुद्धिसागरः । पृष्ठ १०३ पं० २५ । ४. खलः खलम् - पिण्याकः दुर्जनश्च । दुर्गबुद्धिसागरौ । पृष्ठ १३३ पं० २२ । ५. त्रिलिङ्गोऽयमिति बुद्धिसागरः । ३ मर्त्यकाण्ड, श्लोक २६८, पृष्ठ २४५ । २५ इससे अधिक बुद्धिसागर प्रोक्त लिङ्गानुशासन के विषय में हम कुछ नहीं जानते ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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