________________
२/३६ लिङ्गानुशासन के प्रवक्ता और व्याख्याता २८१
टीकाकार वाररुच लिङ्गविशेषविधि की टीका को एक हस्तलेख विश्वेश्वरानन्द संस्थान होशियारपुर के संग्रह में विद्यमान है। इस टाका के लेखक का नाम अज्ञात है। परन्तु इस ग्रन्थ की अन्तिम पुष्पिका के पाठ से ध्वनित होता है कि यह टाका वररुचि को स्वोपज्ञा है : पाठ ५ इस प्रकार है
'इति श्रीमदखिलवाग्विलास... निघृष्टचरणारविन्दाचार्यवररुचिविरचिता लिङ्गविशेषविधिटोका सम्पूर्णा ।'
द्रष्टव्य--हस्तलेख सूची, भाग २, पृष्ठ ४२१, ४२२, ग्रन्थ संख्या ५६०८।
अन्य हस्तलेख-इसी संस्थान के संग्रह में वाररुच लिङ्गानुशासन के तीन हस्तलेख और भी हैं । इनकी संख्या ३२७४, ३२७५, ३२८२ है (द्र०–भाग १, पृष्ठ ६७) इनके रचयिता का नाम अज्ञात है। __ संख्या ३२७४ तथा ३२८२ के कोश वाररुच लिङ्गानुशासन की वृत्ति के हैं। इनमें संख्या ३२७४ का हस्तलेख संक्षिप्त वृत्ति का १५ है । यह प्रायः शुद्ध है। इसका लेखनकाल शक सं०१७८० अर्थात् वि० .. सं० १८१५ है । दूसरा संख्या ३२८२ का हस्तलेख विस्तृत वृत्ति का है । यह प्रायः अशुद्ध है । इसका लेखनकाल वि० सं० १९१६ है । ये दोनों संक्षिप्त और विस्तृत वृत्ति एक ही व्यक्ति की प्रतीत होती हैं। इन्हें हमने लाहौर के लालचन्द पुस्तकालय में सन् १९३८ में , देखा था।
भण्डारकर प्राच्यविद्या शोधप्रतिष्ठान पूना के संग्रह में तीन हस्तलेख वाररुच लिङ्गानुशासन की वृत्ति के हैं । द्र० व्याकरण विभागीय सूचीपत्र ( सन् १९३८ ) संख्या २७७, २७८, २७६, ( पृष्ठ २१६२१८)।
यह वाररुच लिङ्गानुशासन मद्रास विश्वविद्यालय की संस्कृत ग्रन्थमाला में प्रकाशित हर्षवर्धनीय लिङ्गानुशासन के अन्त में पृष्ठ १२६-१३८ तक संक्षिप्त टिप्पणी सहित छप चुका है।
वाररुच कोश-इस लिङ्गानुशासन का वररुचि कोश के नाम से एक व्याख्या-सहित संस्करण काशी से प्रकाशित लीथो प्रेस में छपे ३०