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________________ लिङ्गानुशासन के प्रवक्ता और व्याख्याता २७६ ६. नारायण सुधी (वि० सं० १८००) नारायण सुधी ने अष्टाध्यायी पर शब्दभूषण नाम्नी एक व्याख्या लिखी है। इसमें तृतीय अध्याय द्वितीय पाद के अन्त में उणादि और षष्ठाध्याय के द्वितीय पाद के अन्त में फिट सूत्रों की व्याख्या की हैं, यह हम पञ्चषादी उणादि व्याख्याकार के प्रसङ्ग में लिख चुके हैं। ५ इससे अनुमान होता है कि द्वितीय अध्याय के चतुर्थ पाद के अन्तर्गत लिङ्गप्रकरण के पश्चात पाणिनीय लिङ्गानशासन की भी व्याख्या की होगी, जैसे भट्टोजि दीक्षित ने शब्दकौस्तुभ में की है। नारायण सुधी का देश-काल अज्ञात हैं। १०. तारानाथ तर्कवाचस्पति ( वि० सं० १९३० ) १. बंगाल के प्रसिद्ध वैयाकरण तारानाथ तर्कवाचस्पति ने पाणिनीय लिङ्गानुशासन की एक व्याख्या लिखी है। यह अन्य व्याख्याओं से कुछ विस्तृत है। पाणिनीय लिङ्गानुशासन का पाठ लिङ्गानुशासन की उपलब्ध वृत्तियों के अवलोकन से विदित होता १५ है कि पाणिनीय लिङ्गानुशासन का सूत्रपाठ अत्यधिक भ्रष्ट हो गया है। इस के शुद्धपाठ के सम्पादन की महती आवश्यकता है। ४. चन्द्रगोमी (वि० सं० ११०० पूर्व) चन्द्रगोमी-प्रोक्त लिङ्गानुशासन के पाठ हैम लिङ्गानुशासन के स्वोपज्ञविवरण तथा सर्वानन्द के अमरटीकासर्वस्व प्रादि अनेक ग्रन्थों २० में उद्धृत मिलते हैं । सर्वानन्दोघृत पाठ• 'धारान्धकारशिखरसहस्राङ्गारतोरणाः' इति पुनपुंसकाधिकारे चन्द्रगोमी । भाग २, पृष्ठ ४७ । तथा च चन्द्रगोमी–'ईदूदन्ता य एकाच्च इदन्ताङ्गानि देहिनः' इति । भाग ४।१७४। २५ पाठों से विदित होता है कि यह लिङ्गानुशासन छन्दोबद्ध था। यह इस समय अप्राप्य है।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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