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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
नारायण भट्ट के काल आदि के विषय में इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में 'पाणिनीय व्याकरण के प्रकिया ग्रन्थकार' नामक १६ वें अध्याय में लिख चुके हैं।
५. रामानन्द (वि० सं० १६८०-१७२०) सिद्धान्तकौमुदी के टीकाकार काशीवासी रामानन्द सरयूपारीण ने लिङ्गानुशासन पर एक टीका लिखी थी। यह अपूर्ण उपलब्ध होती हैं। रामानन्द के सम्बन्ध में हम पूर्व भाग १ में 'सिद्धान्तकौमुदी के व्याख्याता' प्रकरण (अ० १६) में लिख चुके हैं।'
६. अज्ञातनामा (वि० सं० १८२५ से पूर्व) पाणिनीय लिङ्गानुशासन की एक वृत्ति विश्वेश्वरानन्द संस्थान होशियारपुर के संग्रह में हैं । इसके रचयिता का नाम प्रज्ञात है।
इस हस्तलेख के अन्त में निम्न पाठ है
'इति पाणिनीयलिङ्गानुशासनवृत्तौ अव्ययाधिकारः । इति लिङ्गानुशासनवृत्तिः समाप्ता । संवत् १८२५ श्रावणवदि १३ दिने १५ सम्पूर्ण कृतं लिखितं पठनार्थम् । देवी सहाय । द्र०-हस्तलेख सूची भाग २, पृष्ठ ८६, ग्रन्थसंख्था ११६२ ।
इससे इतना अनुमान हो सकता है कि इस वृत्ति की रचना वि०सं० १८२५ से पूर्व हुई है । क्योंकि वि० सं० १८२५ में लेखक ने पठनार्थ इसे लिखा है। अत: वि० सं० १८२५ इसका प्रतिलिपि काल है।
७.८. अज्ञातनामा पाणिनीय लिङ्गानुशासन की किन्ही अज्ञात नामा व्यक्तियों द्वारा लिखी गई दो वृत्तियों के हस्तलेख भण्डारकर प्राच्यविद्या शोध प्रतिष्टान पूना के संग्रह में हैं । द्र० व्याकरण विभागीय हस्तलेख (सन् १६३८) संख्या २७५; ४८८/१८८४।८७ तथा संख्या २७६; ३१२/ १८७५-७६ ।
१. रामानन्द के लिये देखो-पाल इण्डिया मोरियण्टल कान्फ्रेंस १२ वां अधिवेशन, सन् १९४१, भाग ४, पृष्ठ ४७.४८ ।