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लिङ्गानुशासन के प्रवक्ता और व्याख्याता
२७७ थी। इसका साक्षात् उल्लेख हमें कहीं नहीं मिला। हर्षवर्धन के लिङ्गानुशासन के सम्पादक वे. वेङ्कटराम शर्मा ने इसका निर्दश किया है। उसका देश कालादि अज्ञात है।
२. रामचन्द्र (वि० सं० १४८० के लगभग) रामचन्द्राचार्य ने प्रक्रियाकौमुदी के अन्तर्गत पाणिनीय लिङ्गानु- ५ शासन की एक व्याख्या की है। रामचन्द्र के कालादि के विषय में हम पूर्व लिख चुके हैं।
३. भट्टोजि दीक्षित (वि० सं० १५१०-१५७५) भट्टोजि दीक्षित ने पाणिनीय लिङ्गानुशासन पर दो वृत्तियां लिखी हैं । एक-शब्दकौस्तुभ-अन्तर्गत, द्वितीय-सिद्धान्तकौमुदी के १० अन्त में।
शब्दकौस्तुभान्तर्गत-शब्दकौस्तुभ के द्वितीय अध्याय के चतुर्थ पाद के लिङ्गप्रकरण में प्रसंगात् लिङ्गानुशासन की टीका की है।
सिद्धान्तकौमुदी के अन्त में-एक वृत्ति सिद्धान्तकौमुदी के अन्त में लिखी है।
इन दोनों में सिद्धान्तकौमुदी की अपेक्षा शब्दकौस्तुभ-अन्तर्गत वृत्ति कुछ अधिक विस्तृत है।
टीकाकार-सिद्धान्तकौमुदी के अन्त में वर्तमान लिङ्गानुशासन वृत्ति पर किस-किस टीकाकार ने टीकाए लिखीं, यह अज्ञात है।
भैरव मिश्र-हां, भैरव मिश्र प्रणीत एक टीका प्रायः पठन-पाठन २० में व्यवहत होती है । भैरव मिश्र के पिता का नाम भवदेव मिश्र था। यह अगस्त्य कुल का था। इसका काल वि.सं. १८५०१६०० के मध्य है।
४. नारायण भट्ट (वि० सं० १६१७-१७३३) नारायण भट्ट ने स्वीयप्रक्रियाकौमुदी के अन्तर्गत पाणिनीय २५ लिङ्गानुशासन पर वृत्ति लिखी थी।
१. हर्ष कृत लिङ्गानुशासन, निवेदना, पृष्ठ ३५। .