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लिङ्गानुशासन के प्रवक्ता और व्याख्याता २७५ २. वामन स्वीय लिङ्गानुशासन के अन्त में लिखता है'व्याडिप्रणीतमथ वाररुचं सचान्द्रं ..... ।' श्लोक ३१ ।
३. हर्षवर्धन स्वप्रोक्त लिङ्गानुशासन के अन्त में पूर्वाचार्यों का निर्देश करता हुप्रा लिखता है
'व्याडेः शङ्करचन्द्रयोर्वररचे विद्यानिधेः पाणिनेः ।' श्लोक ८७।
इन उल्लेखों से प्राचार्य व्याडि का लिङ्गानुशासन-प्रवक्तृत्व स्पष्ट है । व्याडिप्रोक्त लिङ्गानुशासन की इतनी प्रसिद्धि होने पर भी हमें अद्य यावत् उसका कोई ऐसा उद्धरण नहीं मिला, जिससे उसके स्वरूप की साक्षात् प्रतिपत्ति हो सके। वामन के निम्न वचन से व्याडि-प्रोक्त लिङ्गानुशासन के विषय में कुछ प्रकाश पड़ता है-
सूत्रबद्ध-वामन ने स्वीय लिङ्गानुशासन की वृत्ति में लिखा है'पूर्वाचार्याडिप्रमुखैलिङ्गानुशासनं सूत्ररुक्तं, ग्रन्थविस्तरेण च ।' पृष्ठ २।
विस्तृत--व्याडि का लिङ्गानुशासन अति विस्तृत था। इसका निर्देश वामन ने स्वोपज्ञ वृत्ति के प्रारम्भ में भी किया है
'व्याडिप्रमुखैः प्रपञ्चबहुलम् ...।' पृष्ठ १ ।
इससे अधिक व्याडि के लिङ्गानुशासन के विषय में हम कुछ नहीं जानते।
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३-पाणिनि (वि० से २८०० पूर्व) पाणिनि ने स्वशब्दानुशासन से संबद्ध लिङ्गानुशासन का भी २० प्रवंचन किया था। यह लिङ्गानुशासन सम्प्रति उपलब्ध है, और एतद्विषयक प्राचीन आर्ष ग्रन्थों में यही अवशिष्ट है । यह सूत्रात्मक
है।
कोथ का नियुक्तिक कथन--कीथ ने विना किसी प्रकार की युक्ति वा प्रमाण उपस्थित किए लिखा है-- 'पाणिनि के नाम से प्रसिद्ध लिङ्गानुशासन इतना प्राचीन नहीं हो