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संस्कृत-व्याकरण शास्त्र का इतिहास
प्राक्पाणिनीय लिङ्गानुशासन - प्रवक्ता
पाणिनि से पूर्ववर्ती जितने शब्दानुशासन प्रवक्ताओं का हमें परिज्ञान है, उनमें से केवल दो ही प्राचार्य ऐसे हैं, जिन्होंने स्व-तन्त्रसंबद्ध लिङ्गानुशासन का भी प्रवचन किया था। वे हैं शन्तनु और व्याडि |
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अब हम परिज्ञात लिङ्गानुशासन प्रवक्ता और व्याख्याताओं का क्रमशः वर्णन करते हैं—
१ - शन्तनु ( वि० से ३१०० पूर्व )
प्राचार्य शन्तनु ने किसी पञ्चाङ्ग व्याकरण का प्रवचन किया १० था, यह हम फिट्सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता नामक अध्याय में लिखेंगे । शान्तनव उणादिपाठ का निर्देश हम पूर्व अध्याय में कर चुके हैं । प्राचार्य शन्तनु ने स्व-तन्त्र-संबद्ध किसी लिङ्गानुशासन का भी प्रवचन किया था। इस बात की पुष्टि हर्षवर्धनीय लिङ्गानुशासन के सम्पादक वे० वेङ्कटराम शर्मा के उपोद्घात ( पृष्ठ ३४ ) से होती है ।
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२ - व्याडि ( वि० से २८५० पूर्व)
प्राचार्य व्याडि प्रोक्त शब्दानुशासन के विषय में हम के प्रथम भाग में पृष्ठ १४३ - १४५ ( च० सं०) तक लिख व्याडि के परिचय देशकाल आदि के विषय में हमने इस ग्रन्थ के प्रथम भाग ( च० सं०) में पृष्ठ ( २९८ - ३०५ ) तक विस्तार से प्रतिपादन किया है पाठक इस विषय में वहीं देखें ।
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लिङ्गानुशासन
इस ग्रन्थ चुके हैं ।
प्राचायं व्याडि विरचित लिङ्गानुशासन का उल्लेख अनेक लिङ्गानुशासन के प्रवक्ताओं ने किया है । यथा
१. हेमचन्द्राचार्य स्वोपज्ञ लिङ्गानुशासन- विवरण में लिखता है'[ शकु - ] पुंसि व्याडि, स्त्रियां वामनः पुन्नपुंसकोऽयमिति बुद्धिसागर: ।' पृष्ठ १०३, पं० १४, १५ ।