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पच्चीसवां अध्याय लिङ्गानुशासन के प्रवक्ता और व्याख्याता स्त्रीत्व पुस्त्व आदि लिङ्ग जैसे प्राणिजगत् के प्रत्येक व्यक्ति के संस्थान के साथ संबद्ध हैं, उसी प्रकार स्त्रीत्व पुस्त्व आदि लिङ्ग प्रत्येक नाम शब्द के अविभाज्य अङ्ग हैं। इसलिए लिङ्गोनुशासन ५ शब्दानुशासन का एक अवयव है। उसके अनुशासन के विना शब्द का अनुशासन अधुरा रहता है। इतना होने पर भी लिङ्गानुशासन, धातुपाठ, गणपाठ और उणादिपाठ के समान शब्दानुशासन के किसी विशिष्ट सूत्र अथवा सूत्रों के साथ संबद्ध नहीं है । उसे तो शब्दानुशासन का साक्षात् अवयव ही मानना होगा। इसीलिए प्रायः प्रत्येक १० शब्दानुशासन के प्रवक्ता ने स्व-तन्त्र-संबद्ध लिङ्गानुशासन का भी प्रवचन किया। कतिपय ऐसे भी ग्रन्थकार हैं, जिन्होंने शब्दशास्त्र का प्रवचन न करते हुए लिङ्गज्ञान की कठिनाई को दूर करने के लिए केवल लिङ्गानुशासनों का ही प्रवचन किया। यथा हर्षवर्धन तथा वामन आदि ने ।
प्रज्ञात लिङ्गानुशासन प्रवक्ता वा लिङ्गानुशासन लिङ्गानुशासन पर जितने ग्रन्थ सम्प्रति ज्ञात हैं, उनमें से कुछ प्रवक्ताओं के नाम ज्ञात है, कुछ के अज्ञात । हर्षवर्धनीय लिङ्गानुशासन के मद्रास संस्करण के सम्पापक वे० वेङ्कटराम शर्मा ने प्रीफेस पृष्ठ XXXIV,V पर २३ ग्रन्थकारों वा ग्रन्थों का उल्लेख किया है। २० डा० श्री राम अवध पाण्डेय ने सम्मेलन पत्रिका (प्रयाग) वर्ष ४६, संख्या ३ में छपे 'संस्कृत में लिङ्गानुशासन साहित्य' शीर्षक लेख में ४१ ग्रन्थों का उल्लेख किया है। इनमें से कतिपय नामों पर लेखक ने स्वयं सन्देह प्रकट किया है। हम इस प्रकरण में २४ ग्रन्थों का संक्षिप्त विवरण और १६ ग्रन्थों का नामतः उल्लेख प्रस्तुत करेंगे।'
१. हमारे द्वारा प्रकाशित यह रा० क० क० ट्रस्ट, वहालगढ़ (सोनीपत) से प्राप्य है । वामनीय लिङ्गानुशासन सम्पादकीय में ३६ नामों का उल्लेख किया गया है।