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उणादि सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता
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पर एक उणादिटीका निर्दिष्ट हैं । इसके कर्ता का नाम अज्ञात है । टीका के आरम्भ का श्लोक इस प्रकार है
विधाय गुरुपादयोः प्रणतिमार्तदुःखोच्छिदो यथामति, विरच्यते विवरणं नाद्यकृति: ( ह्य णाद्याकृतेः) । प्रथितिमेतदेतु त्वरा,
समस्त बुधसदृशा परोपकृतिहेतुकं यदि समस्तमोदप्रदम् ॥ १ ॥
इस श्लोक से विदित होता है कि इस टीका का नाम विवरण है।
३. उणादिवृत्तिकार
मद्रास राजकीय हस्तलेख संग्रह के सूचीपत्र के पृष्ठ ७६०९ पर १० निर्ज्ञातकर्तृक उणादिवृत्ति का एक हस्तलेख निर्दिष्ट है ।
हरदत्त
फेक्ट ने अपनी बृहद् हस्तलेख सूची में हरदत्त विरचित उणादिसूत्रोद्घाटन नाम की वृत्ति का उल्लेख किया है । इसका उल्लेख हमें अन्यत्र कहीं नहीं मिला ।
हरदत्त नाम का एक प्रसिद्ध वैयाकरण काशिका की पदमञ्जरी नाम्नी व्याख्या का लेखक है । उणादिसूत्रोद्घाटन का लेखक यदि यही हरदत्त हो, तो यह वृत्ति सम्भवतः पञ्चपादी पाठ पर रही होगी, और इसका काल वि० सं० १९९५ होगा ।
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पदमञ्जरीकार हरदत्त ने परिभाषा पाठ पर परिभाषा - प्रकरण २० नामक एक ग्रन्थ लिखा था' । इससे इस बात की अधिक सम्भावना हैं कि यह वृत्ति पदमञ्जरीकार हरदत्त विरचित हो ।
५. गङ्गाधर
६. व्रजराज
इन दोनों वैयाकरणों द्वारा विरचित उणादिवृत्ति का उल्लेख प्रफेक्ट ने अपनी बृहद् हस्तलेख सूची में किया है। इनके विषय में हम इससे अधिक कुछ नहीं जानते ।
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१. एतच्चास्माभिः परिभाषाप्रकरणाख्ये । पद० भाग २ पृष्ठ ४३७ ।
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