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________________ १० संस्कृत व्याकरण- शास्त्र का इतिहास वृत्तिकार १. पद्मनाभदत्त - पद्मनाभदत्त ने अपने उणादिसूत्रों पर स्वयं एक वृत्ति लिखी है । उसका एक हस्तलेख लन्दन के इण्डिया ग्राफिस पुस्तकालय के सूचीपत्र भाग १, खण्ड २, संख्या ८६१ पर निर्दिष्ट है । उसका प्रारम्भ का पाठ इस प्रकार है २७० २५ 'प्रणम्य गोपीजनवल्लभं हरि सुपद्मकारेण विधीयतेऽधुना । अचोऽत्वका विक्रमतोऽज्झलयोरुणादिवृत्तेरिति सारसंग्रहः ॥ बुरुणादेर्बहुधा कृतोऽस्ति यो मनीषिदामोदरदत्तसूनुना । सुपद्मनाभेन सुपद्मसम्मतं विधिः समग्रः सुगमं समस्यते ॥ ....गोपीजनबल्लभं प्रणम्य इदानों सुपद्मकारेण उणादिवृत्तिरिति सारसंग्रहो विधीयते ।' पद्मनाभदत्त ने इस उणादिवृत्ति की सूचना अपनी परिभाषावृत्ति में भी दी है। १५ इस प्रकार विज्ञातसम्बन्ध उणादिपाठों के प्रवक्ताओं और व्या ख्याताओं का वर्णन करके अनिर्ज्ञात-सम्बन्ध उणादिसूत्रों के वृत्तिकारों का वर्णन करते हैं अनितसंबन्ध वृत्ति वा वृत्तिकार १. उत्कलदत्त उत्कलदत्त विरचित उणादिवृत्ति का एक हस्तलेख 'मध्य प्रान्त २० और बरार' ( सेण्ट्रल प्रोविंस एण्ड बरार ) के हस्तलेख सूचीपत्र (सन् १९२६) के संख्या ४८७ पर निर्दिष्ट है । इस वृत्ति के सम्बन्ध में हम इससे अधिक कुछ नहीं जानते । यह संभावना है कि कहीं नामभ्रंग से उज्ज्वलदत्त का उत्कलदत्त न बन गया हो । २. उणादिविवरणकार अलवर राजकीय हस्तलेख संग्रह के सूचीपत्र में संख्या ११२४
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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