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संस्कृत व्याकरण- शास्त्र का इतिहास
वृत्तिकार
१. पद्मनाभदत्त - पद्मनाभदत्त ने अपने उणादिसूत्रों पर स्वयं एक वृत्ति लिखी है । उसका एक हस्तलेख लन्दन के इण्डिया ग्राफिस पुस्तकालय के सूचीपत्र भाग १, खण्ड २, संख्या ८६१ पर निर्दिष्ट है । उसका प्रारम्भ का पाठ इस प्रकार है
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'प्रणम्य गोपीजनवल्लभं हरि सुपद्मकारेण विधीयतेऽधुना । अचोऽत्वका विक्रमतोऽज्झलयोरुणादिवृत्तेरिति सारसंग्रहः ॥ बुरुणादेर्बहुधा कृतोऽस्ति यो मनीषिदामोदरदत्तसूनुना । सुपद्मनाभेन सुपद्मसम्मतं विधिः समग्रः सुगमं समस्यते ॥
....गोपीजनबल्लभं प्रणम्य इदानों सुपद्मकारेण उणादिवृत्तिरिति सारसंग्रहो विधीयते ।'
पद्मनाभदत्त ने इस उणादिवृत्ति की सूचना अपनी परिभाषावृत्ति में भी दी है।
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इस प्रकार विज्ञातसम्बन्ध उणादिपाठों के प्रवक्ताओं और व्या ख्याताओं का वर्णन करके अनिर्ज्ञात-सम्बन्ध उणादिसूत्रों के वृत्तिकारों का वर्णन करते हैं
अनितसंबन्ध वृत्ति वा वृत्तिकार
१. उत्कलदत्त
उत्कलदत्त विरचित उणादिवृत्ति का एक हस्तलेख 'मध्य प्रान्त २० और बरार' ( सेण्ट्रल प्रोविंस एण्ड बरार ) के हस्तलेख सूचीपत्र (सन् १९२६) के संख्या ४८७ पर निर्दिष्ट है ।
इस वृत्ति के सम्बन्ध में हम इससे अधिक कुछ नहीं जानते । यह संभावना है कि कहीं नामभ्रंग से उज्ज्वलदत्त का उत्कलदत्त न बन गया हो ।
२. उणादिविवरणकार
अलवर राजकीय हस्तलेख संग्रह के सूचीपत्र में संख्या ११२४