________________
उणादि सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता
२६६
ने सम्पूर्ण सिद्धान्तचन्द्रिका पर व्याख्या लिखी, अथवा उणादिभाग मात्र पर यह अज्ञात है |
देश - इस व्याख्या का लेखक पञ्जाब प्रान्त का निवासी है, यह इस वृत्ति में पञ्जाबी शब्दों के निर्देश से व्यक्त होता है यथा
छज्ज इति भाषा पृष्ठ ७७, श्रक्क पृष्ठ ८०, सरों पृष्ठ ८८ इट्टां ५ पृष्ठ १०, चिक्कड़ पृष्ठ १११, छानणी पृष्ठ १५२ ।'
काल - इस वृत्ति का एक हस्तलेख भूतपूर्व लालचन्द पुस्तकालय डी० ए० वी० कालेज लाहौर, वर्तमान में विश्वेश्वरानन्द अनुसन्धान विभाग होशियारपुर में विद्यमान है । उसके अन्त में निम्न पाठ है'१९३० मास ज्येष्ठशुदि चतुर्दश्यां तिथौ लिपि कृतं गणपतिशर्मणा ।'
इस निर्देश से इतना स्पष्ट है कि इस व्याख्या की रचना वि० सं० १९३० से पूर्व हुई है । यह व्याख्या पूर्वनिर्दिष्ट, सुबोधिनी से प्रायः मिलती है ।
अन्य हस्तलेख - इसके एक हस्तलेख का निर्देश हम ऊपर कर १५ चुके हैं । उसकी हमने स्वयं एक प्रतिलिपि की थी । तदनन्तर इसका एक हस्तलेख बारहदरी - शाहदरा लाहौर के समीप विरजानन्द श्राश्रम में निवास करते हुए हमें रावी के जलप्रवाह से प्राप्त कतिपय पुस्तकों के मध्य उपलब्ध हुआ था । यह हस्तलेख अपूर्ण है, और हमारे संग्रह में सुरक्षित है ।
२०
१६ - पद्मनाभदत्त (वि० सं० १४०० )
पद्मनाभदत्त के सुपद्म व्याकरण का उल्लेख इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में 'आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण' नामक १७ वें अध्याय में कर चुके हैं । पद्मनाभदत्त ने स्वीय-तन्त्र संबद्ध उणादि - पाठ का भी प्रवचन किया था ।
२५
१. यह पृष्ठ संख्या हमारे हस्तलेख की है ।