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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
१७-सारस्वत-व्याकरणकार (वि० सं० १३०० के समीप)
सारस्वत व्याकरण से संबद्ध उणादिसूत्र उपलब्ध होते हैं। इन का प्रवक्ता अनुभूतिस्वरूपाचार्य है। इसमें केवल ३३ सूत्र हैं।
--- १८-रामाश्रम (वि० सं० १७४१ से पूर्व) ५ रामाश्रम ने सारस्वत का 'सिद्धान्त चन्द्रिका' नाम से जो रूपा
न्तर क्रिया, उसके उणादिसूत्रों की ३७० संख्या है। तथा यह पांच पादों में विभक्त है।
व्याख्याकार १. रामाश्रम-रामाश्रम ने सारस्वत सूत्रों पर सिद्धान्तचन्द्रिका १० नाम्नी व्याख्या लिखी है। उसमें उणादिसूत्रों की भी यथास्थान
व्याख्या की है । यह रामाश्रम भट्टोजि दीक्षित का पुत्र भानुजि दीक्षित ही है, ऐसा ग्रन्थकारों का मत है।' यदि यह मत ठीक हो तो इसका काल वि० सं० १६५० के लगभग होगा।
२. लोकेशकर-लोकेशकर ने सिद्धान्तचन्द्रिका पर तत्त्वदीपिका नाम्नी व्याख्या लिखी है। उस में यथाप्रकरण उणादिसूत्र व्याख्यात हैं।
लोकेशकर के पिता का नाम क्षेमकर और पितामह का नाम रामकर था।
३. सदानन्द-सदानन्द ने सिद्धान्तकौमुदी की तत्त्वबोधिनी टीका का अनुसरण करके सिद्धान्तचन्द्रिका पर सुबोधिनी नाम्नी एक टीका लिखी है । यह टीका पूर्वनिर्दिष्ट तत्त्वदीपिका से अच्छी है। ___ सदानन्द ने सुबोधिनी की रचना वि० सं० १७६६ में की थी। लोकेशकर और सदानन्द की दोनों टोकाए काशी से प्रकाशित हो चुकी हैं।
४. व्युत्पत्तिसारकार-किसी अज्ञातनामा लेखक की व्युत्पत्तिसार नाम की एक व्याख्या इस उणादि पर मिलती है। इसके लेखक
१. काशी मुद्रित सारस्वतचन्द्रिका भाग २ की भूमिका, पृष्ठ २।