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उणादि सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता
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लन्दन के इण्डिया अफिस पुस्तकालय के संग्रह में है । उसके अन्त का पाठ इस प्रकार है
'इति श्रीक्रमदीश्वरकृती जुमरन न्दिपरिशोधितायां वृत्तौ उणादिपादः समाप्तः । '
शिवदास - शिवदास चक्रकती ने जौमर व्याकरण से सम्बद्ध उणादिपाठ पर एक वृत्ति लिखी है। इसका एक हस्तलेख मद्रास राजकीय हस्तलेख संग्रह के सूचीपत्र के पृष्ठ ७६०६ पर निर्दिष्ट है । इसका दूसरा हस्तलेख लन्दन के इण्डिया ग्राफिस पुस्तकालय के सूचीपत्र भाग १, खण्ड २, संख्या ७७१ पर उल्लिखित है । तीसरा डियार संग्रह के व्याकरण विभागीय सूची संख्या ७१६ पर निर्दिष्ट हैं ।
उणादि परिशिष्ट तथा वृत्ति - प्रडियार संग्रह व्याकरण शास्त्रीय ग्रन्थसूची सं० ७१७ पर क्रमदीश्वरकृत उणादिपरिशिष्ट का निर्देश है, और संख्या ७१८ पर उणादिपरिशिष्टवृत्ति का निर्देश मिलता है ।
१६ - मुग्धबोध सम्बद्ध उणादि - पाठ
वोपदेव कृत मुग्धबोध व्याकरण का विवरण हम प्रथम भाग में 'आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण' नामक १७ वें अध्याय में प्रस्तुत कर चुके हैं । मुग्वबोध व्याकरण से सम्बद्ध एक उणादिपाठ भी है ।
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इस उणादिपाठ और उसकी वृत्ति के विषय में डा० शन्नोदेवी ( देहली) ने 'वोपदेव का संस्कृत व्याकरण को योगदान' नामक अपने शोधप्रबन्ध में पृष्ठ ४३७-४३६ तक लिखा है । इसके विषय में हम प्रथम भाग में वोपदेवीय मुग्धबोध व्याकरण के प्रसंग में लिख चुके हैं ।
१. इण्डिया आफिस पुस्तकालय, सूचीपत्र भाग १, खण्ड २, संख्या ८३६। २५