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________________ २६६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास विजयमुनि ने सम्पादित करके प्रकाशित की है । इस ग्रन्थ के अन्त में ग्रन्थकर्ता का नाम अनुल्लिखित है । हस्तलेख के अन्त में जयवीरगणिनाऽलेखि निर्देश मिलता है। यह प्रतिलिपिकर्ता का नाम प्रतीत होता है । हैम लिङ्गानुशासन पर भी एक अवचूरि नाम्नी व्याख्या ५ छपी हुई उपलब्ध होती है । इसके लेखक का नाम कनकप्रभ है। हैम उणादिविवरण के सम्पादक ने उणादिगणसूत्रावरि के हस्तलेख के अन्त्य त्रुटितपाठ की पूर्ति इस प्रकार की है-सम्पूर्णा [[वजयशीलगणिनालेखि] ॥ शुभं.....।' उणादिनाममाला-इस उणादिवृत्ति के लेखक का नाम शुभशील १० है । इसका काल वि० की १५वीं शती का उत्तरार्ध है । १४-मलयगिरि प्राचार्य मलयगिरि के व्याकरण का परिचय हम इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में 'प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण' नामक १७वें अध्याय में दे चके हैं। उसने उणादिसूत्रों का भी प्रवचन किया था, १५ पर सम्प्रति वे उपलब्ध नहीं है । १५-क्रमदीश्वर (वि० सं० १३०० से पूर्व) क्रमदीश्वरप्रोक्त संक्षिप्तसार अपरनाम जौमर व्याकरण के विषय में इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में 'प्राचार्य पाणिनि से उत्तरवर्ती वैयाकरण' नामक १७ वें अध्याय में लिख चुके हैं। क्रमदीश्वर ने २० स्वतन्त्र स्वशास्त्र संबद्ध उणादिपाठ का भी प्रवचन किया था। वृत्तिकार १. क्रमदीश्वर-जुमरनन्दी-क्रमदीश्वर ने स्वीय शब्दानुशासन पर एक वृत्ति लिखी है, जिसका परिशोधन जुमरनन्दी ने किया है। उसी के अन्तर्गत उणादिसूत्रों पर भी वृत्ति है । इसका एक हस्तलेख २५ १. हैमोणादि भूमिका, पृष्ठ २ ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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