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२/३४ उणादि-सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता २६५
१२-बुद्धिसागर सूरि (वि० सं० १०८०) आचार्य बुद्धिसागर सूरि प्रोक्त बुद्धिसागर व्याकरण का उल्लेख प्रथम भाग में 'प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण' नामक' १७वें अध्याय में कर चुके हैं । इस व्याकरण का नाम पञ्चग्रन्थी भी है । इस नाम से ही स्पष्ट है कि बुद्धिसागर सूरि ने शब्दानुशासन ५ के साथ-साथ चार खिल पाठों का भी प्रवचन किया था। इन खिलपाठों में एक उणादिपाठ भी अवश्य रहा होगा।
बुद्धिसागर सूरि ने अपने व्याकरण के सभी अङ्गों पर स्वयं व्याख्या ग्रन्थ भी लिखे थे।
१३–हेमचन्द्र सूरि (वि० सं० ११४५-१२२९) १० प्राचार्य हेमचन्द्र ने अपने व्याकरण से संबद्ध उणादिपाठ का प्रवचन किया था, और उस पर स्वयं विवति लिखी थी।' हस्तलेखों के अन्त में विवरण शब्द से भी इसका निर्देश मिलता है।' ___ यह उणादिपाठ सबसे अधिक विस्तृत है। इसमें १००६ सूत्र हैं । इसकी व्याख्या भी पर्याप्त विस्तृत हैं । इसका परिमाण २८०० " अट्ठाईस सौ श्लोक हैं।'
अन्य वृत्ति-हैमोणादिवृत्ति के सम्पादक जोहन किर्ट ने उपोद्धात पृष्ठ २ V. संकेतित एक हस्तलेख का वर्णन किया है। उसकी मुद्रितपाठ से जो तुलना दर्शाई है, उससे विदित होता है कि उक्त हस्तलेख हेमचन्द्र की बृहवृत्ति का संक्षेपरूप है।
इस वृत्ति का नाम उणादिगणसूत्रावचूरि है। लेखक का नाम अंज्ञात है । हैम व्याकरण के धातुपाठ पर एक प्रवचूरि टीका विक्रम
१. प्राचार्यहेमचन्द्रः करोति विवृति प्रणम्याहम् । प्रारम्भिक श्लोक ।
२. इत्याचार्य हेमचन्द्र कृतं स्वोपज्ञोणादिगणविवरण समाप्तम् ॥ छ । ग्रन्थमाने शत २८०० अष्टविंशति शतानि ।........ हेमोणादिवृत्ति, जोहन .. किर्ट सम्पा०, उपोद्धात पृष्ठ १ ।
३. द्र०-उक्त टिप्पणी २। ४. हेमोणादिभूमिका पृष्ठ २ ।