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उणादि-सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता २६३ ९-वामन (वि० सं० ३५० अथवा ६०० से पूर्व)
वामन विरचित शब्दानुशासन के विषय में इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में 'प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण' नामक १७ वें अध्याय में लिख चुके हैं। वामन ने स्वशास्त्र-संबद्ध उणादिपाठ का भो प्रवचन किया होगा, और उस पर स्वशब्दानुशासनवत् वृत्ति भी ५ लिखी होगी, इसमें सन्देह की स्थिति नहीं। वामन का उणादिपाठ इस समय अज्ञात है।
१०-पाल्यकीर्ति (वि० सं० ८७१-९२४) आचार्य पाल्यकीर्ति के व्याकरण और उसकी वृत्तियों का वर्णन हम 'प्राचाय पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण' नामक १७वें अध्याय में १० कर चुके हैं। पाल्यकीर्ति ने स्वोपज्ञ तन्त्र संबद्ध उणादिसूत्रों का भी प्रवचन किया था, यह उसके निम्न सूत्रों से स्पष्ट है
संप्रदानाच्चोणादयः ।४।३।५७ ॥ उणादयः ।४।३।२८० शाकटायनीय लिङ्गानुशासन की टीका में लिखा है
उणादिषु थप्रत्ययान्तो निपात्यते। हर्षीय लिङ्गानुशासन परिशिष्ट, पृष्ठ १२५।
चिन्तामणि नामक लघुवृत्ति के रचयिता यक्षवर्मा ने भी स्व. वृत्ति के प्रारम्भ में लिखा है-'उणादिकान् उणादौ '(श्लोक ११)।
इन प्रमाणों से पाल्यकीर्ति-प्रोक्त उणादिपाठ की सत्ता स्पष्ट है। २० पाल्यकीति प्रोक्त उणादिपाठ इस समय अप्राप्य है।
--- ११-भोजदेव (वि० सं० १०७५-१११०) भोजदेवप्रोक्त सरस्वतीकण्ठाभरण नामक शब्दानुशासन का वर्णन हम इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में 'प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण' नामक १७ वें अध्याय में कर चुके हैं।