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. सस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
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सर्वधर उगध्याय, रमानाथ पं० गुरुपद हालदार ने लिखा है-दुर्गसिंह की दृष्टि लेकर सर्वधर उपाध्याय ने उपाध्याय सर्वस्व में उणादिपाठ के सकल सूत्रों की व्याख्या की है। रमानाथ चक्रवर्ती ने सार निर्णय में उपाध्याय सर्वस्व का अनुसरण किया है।'
इन दो वृत्तिकारों के विषय में हमें कुछ ज्ञान नहीं है। .
प्राचीनतम हस्तलेख-कातन्त्र उणादिपाठ का वि० सं० १२३१ का एक हस्तलेख पाटन के ग्रन्थभण्डार में विद्यमान है। यह ज्ञात हस्तलेखों में सब से प्राचीन है।
६-चन्द्राचार्य (वि० सं० १००० से पूर्व) आचार्य चन्द्र ने स्वोपज्ञ व्याकरण से संबद्ध उणादिपाठ का भी प्रवचन किया था। इस उणादिपाठ को लिबिश ने स्वसम्पादित चान्द्र व्याकरण में उदाहरण-निर्देश पूर्वक छपवाया है।
चन्द्रगोमी के परिचय तथा काल आदि के विषय में हम इस १५ ग्रन्थ के प्रयम भाग में पृष्ठ ३६८-३७० (च० सं०) पर विस्तार से
लिख चुके हैं। ___ संकलन प्रकार-चन्द्रगोमी ने अपने उणादिपाठ को तीन पादों में विभक्त किया है। इस पाठ का संकलन दशपादी के समान अन्त्यवर्ण क्रम से किया है। तृतीय पाद के अन्त में कुछ प्रकीर्ण शब्दों का संग्रह मिलता है। . . ब-व का अभेद-चन्द्रगोमी ने अन्तस्थ वकारान्त गर्व शर्व अश्व
लटवा प्रभृति शब्दों का निर्देश भी पवर्गीय बान्त प्रकरण में किया है। इससे विदित होता है कि चन्द्रगोमी बंगदेशवासी है। अतएव वह पवर्गीय ब तथा अन्तस्थ व में भेदबुद्धि न रख सका।
१. दुर्गसिंहेर दृष्टि लइया उपाध्याय सर्वस्वे सर्वधर उपाध्याय एइ सकस सूत्र व्याख्या करिया छैन । रमानाथ चक्रवर्तीर सारनिर्णये उपाध्याय सर्वस्व अनुसत हइया छ । व्याकरणदर्शनेर इतिहास, पृष्ठ ५७० ।