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________________ उणादि सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता २५ε में उणादिपाठ पीछे से प्रक्षिप्त हुआ प्रतीत होता है, क्योकि दुर्गसिंह की वृत्ति में उणादिसूत्र पठित नहीं हैं।' बेल्वल्कर के इस कथन का डा० जानकी प्रसाद द्विवेद ने अपने 'कातन्त्रव्याकरणविमर्श' नामक शोध प्रबन्ध में समुचित उत्तर दिया है। काश्मीर - बंग-मद्रास - पाठ - डा० द्विवेद के लेखानुसार काश्मीर पाठ में उणादयो भूतेऽपि दृश्यन्ते सूत्र कृत्प्रकरण में पञ्चम पाद के आरम्भ में पठित है और उसी के आधार पर इस पाद की 'उणादिपाद' संज्ञा है । बंगपाठ में यह सूत्र चतुर्थपाद के अन्त ( ४/४/६७) में उपलब्ध होता है । * वृत्तिकार दुर्गसिंह (वि० सं० ६०० - ६८० के मध्य ) इस उणादिपाठ पर कातन्त्र के व्याख्याता दुर्गसिंह ( दुर्गसिंह्म) की वृत्ति मिलती है । यह वृत्ति मद्रास विश्वविद्यालय की ग्रन्थमाला प्रकाशित हो चुकी है। १० | कातन्त्र के दुर्गनामा दो व्याख्याकार प्रसिद्ध हैं - एक वृत्तिकार, दूसरा वृत्तिटीकाकार । यह दुर्गसिंह वृत्तिकार दुर्गसिंह है । वृत्तिकार १५ दुर्गसिंह काशिकावृत्तिकार से पूर्ववर्ती है, यह हम इस ग्रन्थ के प्रथम भाग कातन्त्र वृत्तिकार दुर्गसिंह के प्रकरण में लिख चुके हैं । बङ्गाक्षरों में प्रकाशित दुर्गसिंह वृत्ति सहित उणादिपाठ में पांच पाद हैं और सूत्र संख्या २६७ है । डा० चिन्तामणि द्वारा मद्रास से प्रकाशित उणादिपाठ में छः पाद हैं और सूत्र संख्या ३६६ है । बङ्गा - २० क्षर संस्करण में दुर्गसिंह की व्याख्या संक्षिप्त है और मद्रास संस्करण में दुर्ग व्याख्या विस्तृत है । " हमने इस ग्रन्थ में पहले (संस्क० १ ३) मद्रास संस्करण को ही आधार मान कर विवेचना की थी । अन्य पाठों का उस समय हमें ज्ञान नहीं था । २५ १. सिस्टम्स् आफ संस्कृत ग्रामर, पृष्ठ ८५ । उद्धृत कातन्त्र व्याकरण विमर्श, पृष्ठ ३८ । २. कातन्त्र व्याकरण विमर्श, पृष्ठ ३८ । ३. कातन्त्र व्याकरण विमर्श, पृष्ठ १३८, १९३९ ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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