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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
प्रसाद नाम की टीका लिखी है । इसी टीका में उणादि- प्रकरण में दशपादी उणादि पाठ पर एक प्रति संक्षिप्त व्याख्या लिखी है।
परिचय - विट्ठल के पिता का नाम नृसिंह और पितामह का नाम रामचन्द्र था । विट्ठल ने व्याकरण शास्त्र का अध्ययन शेषकृष्ण ५ के पुत्र रामेश्वर अपर नाम वीरेश्वर से किया था ।
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काल- विट्ठल कृत प्रसाद टीका का वि० सं० १५३६ का एक हस्तलेख लन्दन के इण्डिया आफिस के संग्रहालय में सुरक्षित है । अतः विट्ठल ने यह टीका वि० सं० १५२० - १५३० के मध्य लिखी होगी ।
विट्ठल तथा उसके पितामह के विषय में हम इस ग्रन्थ के १६वें अध्याय में 'प्रक्रिया कौमुदी' के प्रकरण में लिख चुके हैं ।
इस प्रकार दशपादी उणादि पाठ के तीन ही वृत्ति ग्रन्थ सम्प्रति उपलब्ध हैं । भट्टोजि दीक्षित द्वारा पञ्चपादी का प्राश्रयण कर लेने से उत्तरकाल में पञ्चपादी पाठ का ही पठन-पाठन अधिक होने १५ लगा । इस कारण दशपादी पाठ और उसके वृत्ति ग्रन्थ प्रायः उत्सन्न से हो गये ।
५ – कातन्त्रकार (वि० सं० २००० से पूर्व ) उणादिसूत्र प्रवक्ता - कात्यायन (विक्रम समकाल )
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कातन्त्र व्याकरण के मूल प्रवक्ता ने कृदन्त शब्दों का अन्वाख्यान नहीं किया था । अतः कृदन्त भाग का प्रवचन कात्यायन गोत्रज वररुचि ने किया । यह हम इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में कातन्त्र के प्रकरण में लिख चुके हैं । कातन्त्र व्याकरण से सम्बद्ध एक उणादिपाठ उप लब्ध होता है । उणादिसूत्र कृदन्त भाग के परिशिष्ट रूप हैं । अतः कातन्त्र संबद्ध उणादिपाठ का प्रवचन भी कात्यायन वररुचि ने ही किया 'था, यह स्पष्ट है । यह कात्यायन वररुचि महाराज विक्रम के नवरत्नों में अन्यतम है।
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उणादिसूत्र - पाठ पर विचार - कातन्त्र व्याकरण से संबद्ध उणादि पाठ के विषय में डा० बेल्वल्कर महोदय ने लिखा है कि 'कृत्सत्रों'