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२/३३ उणादि सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता
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सरस्वती भवन के संग्रह में सुरक्षित है । हमने इस वृत्ति का प्रवलोकन सन् १९४० में किया था और उसी समय हमने इसकी प्रतिलिपि की थी । तात्कालिक पुस्तकालयाध्यक्ष श्री पं० नारायण शास्त्री ख्रीस्ते के कथनानुसार उक्त हस्तलेख उन्होंने 'इन्दौर' से प्राप्त किया
था ।
यह हस्तलेख नवम पाद के १६वें सूत्र के अनन्तर खण्डित है। और मध्य में भी बहुत जीर्ण होने से त्रुटित है । हस्तलेख के अक्षरविन्यास तथा कागज की अवस्था से विदित होता है कि हस्तलेख किसी महाराष्ट्रीय लेखक द्वारा लिखित है और लगभग १५० वर्ष प्राचीन है ।
काल - वृत्तिकार के नाम आदि का परिज्ञान न होने से इसका देश काल प्रज्ञात है । इस वृत्ति की उणादिसूत्रों की अन्य वृत्तियों से तुलना करने पर विदित होता है कि यह वृत्ति पूर्व निर्दिष्ट दशपादी "वृत्ति के आधार पर लिखी गई है । इसके साथ ही यह भी प्रतीत होता है कि यह वृत्ति हेमचन्द्र विरचित उणादिवृत्ति से पूर्ववर्ती है । १५ हमारे इस अनुमान में निम्न प्रमाण है
सूत्र
दशपादी उणादि का एक सूत्र है - धेट ई च ( ५१४३) । इस सूत्र की व्याख्या[करते हुए माणिक्यदेव ने धेना शब्द का व्युत्पादन इस से माना है । परन्तु इस अज्ञातनामा वृत्तिकार ने घयन्ति तामिति धीना सरस्वती माता च निर्देश करके घीना शब्द का व्युत्पादन स्वीकार किया है। हेमचन्द्र ने स्वोपज्ञ उणादिवृत्ति में लिखा है- ईत्वं चेत्येके; धीना । सूत्र २६८, पृष्ठ ४६।
२०
• उणादिवाङमय में सम्प्रति ज्ञात वृत्तिग्रन्थों में अकेली यही वृत्ति है, जिसमें धीना शब्द का साधुत्व दर्शाया है । अन्य सब वृत्तियों में ना शब्द का ही निर्देश किया है। इसलिए हेमचन्द्र ने एके शब्द २५ द्वारा इस वृत्ति की ओर संकेत किया है, ऐसा हमारा अनुमान है । • यदि यह अनुमान ठीक हो, तो इस वृत्ति का काल वि० सं० १२०० से पूर्व होगा ।
३. विट्ठलार्य (वि० सं० १५२० )
विट्ठल ने अपने पितामह रामचन्द्र विरचित प्रक्रियाकौमुदी पर ३०