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शब्दानुशासन के खिलपाठ ने भी काशिका के शब्दों का ही उल्लेखन किया है ।'
काशिका की व्याख्या में न्यासकार जिनेन्द्रबुद्धि लिखता हैखिलपाठो धातुपाठः चकारात् प्रातिपदिकपाठश्च ।
काशिका १।३।२ की व्याख्या में हरदत्त ने वाक्यपाठ शब्द से वार्तिकपाठ का भी निर्देश किया है
खिलपाठो धातुपाठः प्रातिपदिकपाठो वाक्यपाठश्च ।
हरदत्त ने वाक्यपाठ शब्द से वार्तिकपाठ का निर्देश किया है। वैयाकरणनिकाय में वातिककार के लिए 'वाक्यकार' पद सुविज्ञात है।' हमें वात्तिकों के लिए खिल शब्द का प्रयोग अन्यत्र उपलब्ध नहीं हुप्रा । हमारे विचार में पदमजरीकार का उक्त निर्देश चिन्त्य है। १०
जिनेन्द्रबुद्धि और हरदत्त की भूल-काशिका के 'खिलपाठ' शब्द की व्याख्या में जिनेन्द्रबुद्धि और हरदत्त दोनों ने भूल की है। जिनेन्द्रबुद्धि ने खिलपाठ शब्द से केवल धातुपाठ का निर्देश किया है, और गणपाठ का संग्रह चकार से किया है। जिस प्रकार धातुपाठ का शब्दानुशासन के भूवादयो धातवः (१।३।१) सूत्र के साथ साक्षात् १५ सम्बन्ध है, उसी प्रकार गणपाठ का भी शब्दानुशासन के तत्तत् सूत्रों के साथ सीधा सम्बन्ध है। उणादिपाठ भी उणादयो बहलम (३.३।१) सूत्र का ही प्रपञ्च है। अत एव भर्तृहरि ने उणादिपाठ के लिए भी खिलपाठ शब्द का प्रयोग किया है। इसलिए खिलपाठ शब्द से धातुपाठ, गणपाठ, उणादिपाठ और लिङ्गानुशासन इन चारों का संग्रह जानना चाहिए। हरदत्त ने खिलपाठ के अन्तर्गत वाक्यपाठ का भी निर्देश किया है, यह भी चिन्त्य है, यह पूर्व लिख चुके हैं। वस्तुतः वाक्यपाठ =वातिकपाठ का संग्रह चकार से करना चाहिए। . १. तुलना करो-उपदेशो नाम सूत्रपाठः खिलपाठः । परिभाषासंग्रह (पूना संस्क०) पृष्ठ ५।
२. संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास, भाग १, 'अष्टाध्यायी के वार्तिक । कार' अध्याय में 'वात्तिककार =वाक्यकार' शीर्षक सन्दर्भ ।
३. नहि उपदिशन्ति खिलपाठे । महाभाष्य दीपिका, हमारा हस्तलेख पृष्ठ १४६ । पूना संस्क० पृष्ठ १३५ में 'द्विरप्युदिशन्ति' खिलपाठे' पाठ है। तदनुसार धातुपाठ का निर्देश है।
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