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खिल शब्द का अर्थ - खिल शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में होता है । शतपथ और शाङ्खायन ब्राह्मण में खिल शब्द ऊषर भूमि के लिए ५ प्रयुक्त होता हैं ।' गोपथ ब्राह्मण तथा मनुस्मृति आदि में खिल शब्द का प्रयोग ग्रन्थ के परिशिष्टरूप से संगृहीत अंश के लिए उपलब्ध होता है । वैदिक वाङ् मय में प्रयुक्त खिल शब्द का प्रयोग 'स्वशाखा - श्रनधीत स्वशाखीयकमोंपयोगी परशाखीय मन्त्र - संग्रह' अर्थ में मिलता है । इनका परिशिष्ट शब्द से भी व्यवहार होता है।
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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
अङ्ग शब्दानुशासन के उपकारी होने से शब्दानुशासन की अपेक्षा गौण हैं । अत एव ये धातुपाठ आदि शब्दानुशासन के खिल माने जाते हैं ।
खिल का श्रवयव अर्थ - खिल शब्द का एक अर्थ अवयव भी है। कृत्स्न अर्थवाची नञ्समास घटित अखिल शब्द में खिल का अर्थ अवयव = भाग ही है ।"
धातुपाठ आदि के लिए खिल शब्द का प्रयोग - धातुपाठ आदि अङ्गों के लिए खिल शब्द का प्रयोग काशिका में उपलब्ध होता है । १५ अष्टाध्यायी १ । ३ । २ की व्याख्या में काशिकाकार ने लिखा है
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उपदिश्यतेऽनेनेत्युपदेशः शास्त्रवाक्यानि सूत्रपाठ: खिलपाठश्च । सरस्वतीकण्ठाभरण १।: १७ की हृदयहारिणी व्याख्या में दण्डनाथ
९. यद्वा उर्वरयोरसंभिन्नं भवति खिल इति वै तदाचक्षते । शत ८ | ३ | ४|१; शांखा० ३०|८|| उर्वरयोः सर्वसस्याढ्ययोः क्षेत्रयोः असम्भिन्न२० मसंस्पृष्टं भवति स्वयमसस्यं भवति, तत्क्षेत्रं खिल इत्युच्यते इति शतपथव्याख्याने
सायणः ।
२. सामवेदे खिलश्रुतिः ॥ गोपथ १|१|२६|| स्वाध्यायं श्रावयेत् पित्र्ये धर्मशास्त्राणि चैव हि । श्राख्यानानीतिहासांश्च पुराणानि खिलानि च ॥ मनु० ३।२३२||
३. परशाखीयं स्वशाखायामपेक्षावशात् पठ्यते तत् खिलमुच्यते । महाभारत नीलकण्ठ टीका, शान्ति ० ३२३॥१०॥
४. द्र० पं० सातवलेकर मुद्रापित ऋग्वेद के अन्त में 'अथ परिशिष्टानि' । ५. कोशव्याख्याकार अखिल शब्द की व्युत्पत्ति 'नास्ति खिलं शून्यं यस्मिंस्तत्' दर्शाते हैं ।