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संस्कृत व्याकरण - शास्त्र
का
इतिहास
अठारहवां अध्याय
शब्दानुशासन के खिलपाठ
संस्कृत भाषा के जितने भी उपलब्ध अथवा परिज्ञात व्याकरणशास्त्र हैं, उनमें प्राय: प्रत्येक पांच अङ्गों में विभक्त है । अत एव वैयाकरण-निकाय में व्याकरण की कृत्स्नता के द्योतन के लिए पञ्चाङ्ग व्याकरण आदि शब्दों का व्यवहार होता है ।
पञ्चाङ्ग व्याकरण यथा
हेमचन्द्राचायः श्रीसिद्धहेमाभिधानाभिधं पञ्चाङ्गमपि व्याकरणं सपादलक्षपरिमाणं संवत्सरेण रचयाञ्चके ।'
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.व्याकरण - शास्त्र के ये पांच अङ्ग वा ग्रन्थ इस प्रकार माने जाते हैं
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पञ्चग्रन्थी - बुद्धिसागर सूरि विरचित 'बुद्धिसागर' व्याकरण का दूसरा नाम 'पञ्चग्रन्थी' व्याकरण है। इसमें सूत्रपाठ के साथ साथ अन्य खिल पाठ के ग्रन्थों का भी प्रवचन होने से यह 'पञ्चग्रन्थी' ' नाम से प्रसिद्ध है ।
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दानुशासन (सूत्रपाठ ), धातुपाठ, गणपाठ ( = प्रातिपदिकपाठ) २० उणादिपाठ, तथा लिङ्गानुशासन ।
इन पांचों अङ्गों वा ग्रन्थों में शब्दानुशासन मुख्य हैं। शेष चार
१. प्रबन्धचिन्तामणि, पृष्ठ ४६० ।