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________________ १५ २५४ २५ १० निर्दिष्ट हैं । संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास हैमोणादिवृत्ति दशपादीवृत्ति स्यामेर्धातोः किकन् प्रत्ययो केचित् प्रत्ययस्य दीर्घत्वमिच्छन्ति । सिमीकः - भवति, सम्प्रसारणं च प्रत्ययस्य । सूक्ष्मकृमि:। सूत्र ४४ । सिमीकः सूक्ष्मा कृमिजाति: । पृष्ठ १३५ । ख - परिवत्सरादीन्यपि वर्षविशेषाभिधानानीत्येके । सूत्र ४३६, पृष्ठ ७८ । एवं परिवत्सरः विवत्सरः, इद्वत्सरः, इदावत्सरः । इद्वत्सर: अयनद्वयविषयः । पृष्ठ ३२५ । इसी प्रकार हैं धातुपारायण में भी दशपादीवृत्ति के पाठ बहुत्र 14..... 1 ५ – क्षीरस्वामी ने स्वकीय क्षीरतरङ्गिणी में बहुत्र दशपादी - वृत्ति से सहायता ली है । दोनों के पाठ बहुत्र एक समान हैं । कहींकहीं एके प्रादि द्वारा परोक्ष रूप से दशपादोवृत्ति की ओर संकेत भी किये हैं। यथा क्षीरतरङ्गिणी जनिदाच्यु ( उ० ४।१०४) इति मत्स: । मच्छ इत्येके । ५५१ । ६ - काशिकावृत्ति का रचयिता वामन ( वि० सं० ६६५ ) तृतीया कर्मणि (६।२।४८) सूत्र की व्याख्या में प्रसंगवश दशपादी - २० वृत्ति की ओर संकेत करता है काशिका दशपादीवृत्ति आयुपपदे क्षि हनि इत्ये शाङि श्रहनिभ्यां ह्रस्वश्चेति प्र हिरन्तोदात्तो व्युत्पादितः । ताभ्यां धातुभ्यामिण् प्रत्ययो केचित्त्वाद्युदात्तमिच्छन्ति । पृष्ठ | भवति डिच्च, ह्रस्वश्च, पूर्वपदस्य चोदात्तः । पृष्ठ ४१ । द्रष्टव्य-ते समानेख्यः स इत्युदात्तग्रहणमनुवर्त दशपादीवृत्ति ... जनिदाच्यु (द० उ० १०।१५ ) | "माद्यतीति मच्छ:- मत्तः पुरुषः । चोदात्त यन्ति । न्यास भाग २, पृष्ठ ३५३ १. यह पृष्ठ संख्या हमारे द्वारा सम्पादित दशपादी उणादिवृत्ति की है । ३० आगे भी इसी प्रकार जोड़ें ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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