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२५२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
ये दोनों हस्तलेख कश्मीर से संगृहीत किये गये हैं । शारदा लिपि में भूजपत्र पर लिखे हैं। हस्तलेख अति पुराने है। संख्या २६० के हस्तलेख के अन्त में सं० ३० वै शुद्धि ति च-वाम-एकादश्याम् । सूचोपत्र में इसे सप्तर्षि संवत् माना है।
इन प्राचीन हस्तलेखों की उपस्थिति में इस वत्तिकार के माणिक्य[देव] नाम में सन्देह का कोई स्थान नहीं है।
देश-दशपादीवत्ति के सबसे प्राचीन हस्तलेखों के कश्मीर की शारदा लिपि में लिखित होने से इस वृत्ति का रचयिता माणिक्यदेव
कश्मीर का ही है । ऐसा मानना युक्ति संगत प्रतीत होता है। १० काल-इस वृत्तिकार का काल अज्ञात है। हमने इस वृत्ति के
प्राचीन ग्रन्थों से जो उद्धरण संगहीत किये हैं, उनके आधार पर इतना ही कहा जा सकता है कि इस वृत्ति की रचना का काल ७०० विक्रम से पूर्व है । इसमें निम्न प्रमाण हैं
१-भट्टोजि दीक्षित (वि० सं० १५१०–१५७५) ने सिद्धान्त१५ कौमुदी की प्रौढमनोरमा नाम की व्याख्या में दशपादीवृत्ति के अनेक पाठ उद्धृत किये हैं। यथाप्रौढमनोरमा
दशपादोवृत्ति क-खरुगब्दस्य क्रूरो मूर्ख- खनतीति खरु:-क्रूरो श्च इत्यर्थद्वयं दशपादीवृत्त्य- | मूर्खश्च । पृष्ठ ७७। २० नुसारेणोक्तम् । पृष्ठ ७५१
ख-फर्फरादेश इत्युज्ज्वल- अस्य अभ्यासस्य फादेशोपदत्तरीत्योक्तम् । वस्तुतस्तु धातो- | धात्वसलोपा निपात्यन्ते । फर्फरीद्वित्वमुकारस्याकारः सलोपो रुक् | का । पृष्ठ १५३ । चाभ्यासस्येति दशपायोक्तमेव | न्याय्यम् । पृष्ठ ७८७ ।
२–देवराज यज्वा (वि० सं० १३७० से पूर्व) ने अपनी निघण्टुटीका में इस वृत्ति के अनेक पाठ नाम निर्देश के विना उद्धृत किये हैं । यथा
१. इन सब पाठों का निर्देश हमने स्वसम्पादित ग्रन्थों में तत्तत स्थानों ३० की टिप्पणी में कर दिया है।