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उणादि-सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता
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इस वृत्ति के संस्कृत वाङमय के विविध ग्रन्थों से जितने भी उद्धरण संगृहीत किये, सर्वत्र या तो वे दशपादी वृत्तिकार के नाम से उद्घत है अथवा विना नाम निर्देश के । हमें आज तक इस वत्ति का एक भी उद्धरण ऐसा प्राप्त नहीं हुआ जो माणिक्यदेव के नाम से निर्दिष्ट हो। ___ काशी मुद्रित तथा तजौर के हस्तलेख के अन्त में उज्ज्वलदत्त का नाम कैसे अङ्कित हुआ, यह भी विचारणीय है । क्योंकि इस वृत्ति का एक भी उद्धरण उज्ज्वलदत्त के नाम से क्वचित् भी निर्दिष्ट नहीं है। पञ्चपादी पाठ के एक वृत्तिकार का नाम उज्ज्वलदत्त अवश्य है, परन्तु उसने सर्वत्र स्वनाम के साथ जाजलि पद का निर्दश किया १० है। उक्त दोनों प्रतियों में जाजलि का उल्लेख नहीं है। इतना ही नहीं, दोनों वृत्तिग्रन्थों की रचना शैली में भूतल-आकाश का अन्तर हैं । इसलिये दशपादी की इस वृत्ति का रचयिता पञ्चपादी वृत्तिकार उज्ज्वलदत्त नहीं हो सकता, यह निश्चित है। हमारा अनुमान है कि उणादि वाङमय में उज्ज्वलदत्त की अतिप्रसिद्धि के कारण लोथो १५ प्रेस काशी की छपी तथा तजौर के हस्तलेख में उज्ज्वलदत्त का नाम प्रविष्ट हो गया है।
आफेक्ट का लेख सत्य-आफेक्ट ने अपने हस्तलेखों के सूचीपत्र में प्रकृत दशपादी उणादिवृत्ति के लेखक का जो माणिक्यदेव नाम लिखा है वह ठीक है । भण्डारकर प्राच्यविद्या शोध प्रतिष्ठान, पूना २० के संग्रह में दशपादी उणादिवृत्ति के चार हस्तलेख हैं। द्र० सन् १९३८ का छपा व्याकरण विषयक सूचीपत्र, ग्रन्थ संख्या २६३:२७५/ १८७३-७६; २६४; २७६/१८७५-७६ । २६५, २७४/१८७५-७६ । २६६; ५६,१८६५-६८ । ___ इनमें से संख्या २६३ के हस्तलेख के अन्त में निम्न पाठ मिलता २५
. इति उणादिवृत्तौ विप्रकीर्णको दशमः पादः । समाप्ता चेयमुणादिवृत्तिः । कृतिराचार्य माणिक्यस्येति । शुभमस्तु ।
संख्या २६४ के हस्तलेख के अन्त में पाठ है- उणादिवृत्तौ दशमः पादः ॥ समाप्ता चेयमुणादिवृत्तिः। कृति- ३० राचार्यमाणिक्यस्येति ।