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________________ २५० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास इस प्रकार दशपादी उणादिपाठ में और भी अनेक प्रकार का वैशिष्ट्य उपलब्ध होता है। दशपादी के वृत्तिकार दशपादी पाठ पर भी पंचपादी पाठ के समान अनेक वैयाकरणों ५ ने वृत्ति ग्रन्थ लिखे होंगे, परन्तु इस पाठ के पठन-पाठन में व्यवहृत न होने के कारण अनेक वत्ति ग्रन्थ कालकवलित हो गये, ऐसी संभावना है। सम्प्रति दशपादी पाठ पर तीन ही वृत्तिग्रन्थ उपलब्ध हैं। उपलब्ध वृत्तियों के विषय में नीचे यथाज्ञान विवरण उपस्थित करते हैं। १-माणिकयदेव (७०० वि० सं० पूर्व) १० दशपादी उणादिपाठ की यह एक अति प्राचीन वृत्ति है। इस वृत्ति के उद्धरण अनेक प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं। यह वृत्ति वि० सं० १९३२ (सन् १८७५) में काशी में लीथो प्रेस में छप चुकी हैं । इसके एक प्रामाणिक संस्करण का सम्पादन हमने किया है।' वृत्तिकार का नाम-अाफेक्ट ने अपने बृहत् हस्तलेख सूची में " इस वृत्ति के लेखक का नाम माणिक्यदेव लिखा है। पूना के डेक्कन कालेज के पुस्तकालय के सूचीपत्र में भी इसका नाम माणिक्यदेव ही निर्दिष्ट है । पत्र द्वारा पूछने पर पुस्तकाध्यक्ष ने उक्त नाम निर्देश का आधार आफ्रेक्ट के सूचीपत्र को ही बताया। वाराणसी में लीथो प्रेस में प्रकाशित पुस्तक के आदि के सात पादों में ग्रन्थकार के नाम का उल्लेख नहीं है, परन्तु अन्तिम तीन पादों में उज्ज्वलदत्त का नाम निर्दिष्ट है। इस वत्ति का एक हस्तलेख तजौर के पूस्तकालय में भी है। उसके ग्रन्थ की समाप्ति के अनन्तर कुछ स्थान रिक्त छोड़कर उज्ज्वलदत्त का नाम अङ्कित है। उक्त पुस्तकालय के सूचीपत्र के सम्पादक ने आफ्रेक्ट के प्रमाण से ग्रन्थकार का माणिक्यदेव नाम लिखा है। १. यह संस्करण राजकीय संस्कृत-कालेज वाराणसी की सरस्वती भवन ग्रन्थमाला में सन् १९४२ में प्रकाशित हुआ है। २. यह पत्र-व्यवहार वृत्ति के सम्पादन काल सन् १९३४ में हुआ था। ३. 'इत्युज्ज्वलदत्तविरचितायामुणादिवृतौ...... ' पाठ मुद्रित हैं।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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