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उणादि सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता
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है, जिनमें अनेक प्रत्ययों का पाठ उपलब्ध होता है, और उनसे विभिन्न वर्ण अन्त शब्दों का साधुत्व कहा गया है । यथाप्रथम सूत्र में-- प्राल, वालज्, आलीयर् प्रत्यय । पञ्चम सूत्र में - उन, उन्त, उन्ति, उनि प्रत्यय ।
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इसी प्रकार अन्यत्र भी ।
यदि दशपादी पाठ का स्वतन्त्र प्रवचन होता, तो इसका प्रवक्ता इस पाद के सूत्रों में एक साथ कहे गये विभिन्न प्रत्ययों को तत्तत् वर्णान्त प्रत्ययों के प्रकरण में बड़ी सुगमता से संकलन कर सकता था । उसे व्यमिश्रित वर्णान्त प्रत्ययों के लिए प्रकीर्ण संग्रह करने की आवश्यकता न होती । इससे भी यही बात पुष्ट होती है कि दशपादी १० पाठ का मुख्य आधार पञ्चपादी पाठ है।
दशपादी पाठ का वैशिष्ट्य
यद्यपि दशपादी पाठ के प्रवक्ता ने अपना मुख्य आधार पञ्चपादी पाठ को ही बनाया है, पुनरपि इसमें दशपादी पाठ के प्रवक्ता का स्वोपज्ञात प्रश भी अनेकत्र उपलब्ध होता है । यह उपज्ञात अंश १५ दो प्रकार का है
१ - पञ्चपादी सूत्रों का तत्साधक शब्दों के अन्त्य वर्ण क्रम से संकलन करते समय अनेक स्थानों पर अनुवृत्ति दोष उत्पन्न होता है । उस दोष के परिमार्जन के लिए दशपादी - प्रवक्ता ने उन-उन सूत्रों में तत्तद् विशिष्ट अश को जोड़कर अनुवृत्ति दोष को दूर किया २० है । यथा
क -~ पञ्चपादी उणादि में क्रमशः स्रुवः कः, चिकू च दो सूत्र ( २ । ६१, ६२ ) पढ़े हैं । दशपादी संकलन क्रम में प्रथम सूत्र कुछ पाठान्तर से ८।३० में रखा गया है, द्वितीय सूत्र से कान्त त्रक् शब्द की निष्पत्ति होने से उसे कान्त प्रकरण ( द्वितीयपाद ) में रखना २५ आवश्यक हुआ । इन दोनों सूत्रों को विभिन्न स्थानों में पढ़ने पर, स्रक् शब्द साधक द्वितीय सूत्र में पञ्चपादी क्रम से पूर्व सूत्र से अनुवृत्ति द्वारा प्राप्त होनेवाली स्र धातु का दशपादी क्रम में प्रभाव प्राप्त होता है । इस दोष की निवृत्ति के लिये दशपादी के प्रवक्ता ने 'स्र ' धातु का निर्देश करते हुए स्त्रवः चिकू ऐसा न्यासान्तर किया ।
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